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Wednesday, November 21, 2007

मिजोरम हिंदी सीख रहा है




-गोपाल प्रधान
(गतांक से आगे).....प्रतिभागियों में भी ज्यादातर अच्छी हिंदी बोल रहे थे। एक निजी हिंदी प्रशिक्षण केन्द्र भी गया। इसे कालेज की प्रवक्ता लुइस अपने ही घर में चलाती हैं। वहां पता चला कि दुकानों में काम करने वाले मिजो तीन चार सौ रूपये में हिंदी सीखते हैं। अध्यापक मिजो भाषा में हिंदी सिखा रहे थे। बीसेक छात्र थे। जो हिंदी ध्वनियां उनके कंठ में नहीं थी उन्हें भी विद्यार्थी कोशिश करके उच्चारित करते हैं। रात में सरकारी चैनल पर देखा किसी स्कुल में हिंदी अध्यापिका बच्चों को मिजो माध्यम से हिंदी सिखा रही थी और दूरदर्शन पर उसका सजीव प्रसारण जारी था। केंद्रीय हिंदी संस्थान में हिंदी की प्रोफेसर सी ई जीनी और उनकी बहन चनमोई का नाम हरेक हिंदी प्रशिक्षु जानता है। दोनों बहनें हिंदी में पी एच डी हैं। जिनी की किताब पूर्वोत्तर भारत में हिंदी भाषा और साहित्य साथ लेकर गया था। थनमोई की किताब `हिंदी और मिजो वाक्य रचना का तुलनात्मक अध्ययन कालेज की लाइब्रेरी में मिली। जब इसे मेरी मेज पर गेस्ट हाउस के एक कर्मचारी ने देखा तो श्रद्धा भाव से बताया कि मेरी लडकी भी हिंदी में बी ए कर रही है। हिंदी मिजोरम में सबसे ताजा रोजगार है।
प्रदेश सरकार ने जो भूतपूर्व विद्रोहियों की है शायद नीतिगत निर्णय लेकर यह अभियान की तरह शुरू किया है। बस फर्क यह है कि उनका जोर फिलहाल साहित्य के बजाय भाषा शिक्षण पर है। जिला शिक्षा निदेशक जब कालेज गए तो उन्होने भी इसी पर जोर दिया। इसे अभियान की बजाय रणनीति कहना उचित होगा। हालांकि यह देखना काफी कारूणिक और विडंबनापूर्ण लगा कि भारतीय राज्य के हाथों पराजित होने के बाद मिजो जाति ने उन्हीं की शर्तों पर राष्ट्रीय एकता की मुख्य धारा में शामिल होने के लिए यह रणनीति अपनाई है।
मिजोरम केरल के बाद भारत का सर्वाधिक शिक्षित और साक्षर प्रांत है। अगर इसकी हिंदी शिक्षा की गति यही रही तो आगामी वर्षों में कुछ चौंकाने वाले आंकडे हिंदी प्रदेश के लोगों को सुनने को मिल सकते हैं। मिजोरम में महिलाओं की संख्या पुरूषों से अधिक है इसलिए लडकियों को स्वयं ही अपने लिए वर खोजना पडता है। मिजो में जो लुशेई रालते पोई आदि जनजातियां हैं उनके बीच विवाह को वे अंतर्जातीय नहीं मानते।बंगाली और बाहरी लोगों के साथ विवाह को अंतर्जातीय माना जाता है और ऐसे विवाह मिजोरम में खूब होते हैं।
यह प्रक्रिया चाहकितनी भी कारूणिक हो पर समूची दुनियां में चल रही है। आश्चर्य यह है कि इसी विडंबना का बौद्धिक उत्सव `उत्तर औपनिवेशिकता'नाम्ना सिद्धांत के आधार पर मनाया जाता है। यही भारतीय शासक वर्ग कर रहा है और उन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए मिजोरम भी कर रहा है।
`इनर लाइन परमिट' ने कुछ भला तो मिजोरम का जरूर किया है। रास्ते में चूना पत्थर और कोयले का वैसा उत्खनन नहीं दिखाई पडता जैसा मेघालय में कदम कदम पर होता है। अब राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होने के जोश में पता नहीं क्या हो।
सिल्चर आने के बाद अखबारों में खबर देखी कि शासक पार्टी की युवा शाखा ने हिंदी धारावाहिकों की लोकप्रियता को मिजो जीवन पद्धति पर हमला मानकर विरोध का अभियान चलाने का निर्णय लिया है। स्वयं मैने हिंदी प्रशिक्षण संस्थान के विद्यार्थियों को टेलीविजन पर पागल की तरह ये धारावाहिक देखते देखा था। मिजो भाषा की वाक्य रचना अजीब है। अगर कर्ता संज्ञा हो तो वाक्य कर्ता कर्म क्रिया के ढांचे में होगा लेकिन अगर सर्वनाम हो तो ढांचा कर्म कर्ता क्रिया का हो जाएगा। क्रिया के मूल रूप में काल से कोई परिवर्तन नहीं होता बल्कि मुल रूप के साथ कालबोधक शब्द अलग से लगा दिया जाता है।(समाप्त)
(लेखक सिल्चर विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं)

3 comments:

बसंत आर्य said...

वाह जी वाह .अच्छी जानकारी दी आपने. सुखद है ये जानना

समयचक्र said...

हिंदी का भविष्य उज्जवल है. बढ़िया जानकारी के लिए धन्यवाद

Batangad said...

हिंदी मिजोरम में पढ़ी-पढ़ाई जा रही है। ये देश को जोड़ने में भी मदद करेगा। वो, हिस्सा अकसर कटा-कटा सा रहता है।