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-गोपाल प्रधान
इस बात को आप बाहर से नहीं समझ सकते। इसके लिए आपको मिजोरम जाकर सतह के नीचे चल रही हरकतों को ध्यान से देखना होगा।मुझे इसका सुयोग तब मिला जब केन्द्रीय हिंदी संस्थान के तत्वाधान में मिजोरम हिंदी प्रशिक्षण महाविद्यालय के अध्यापकों के लिए आयोजित उच्च नवीनीकरण कार्यशाला में संसाधन पुरूष के बतौर आमंत्रित किया गया। दिल में हौंस लिए ३ सितंबर की रात कैपिटल ट्रावेल्स की बस से निमंत्रण पत्र और असम वि वि का पहचान पत्र लेकर चला।
मिजोरम में प्रवेश के लिए ‘इनर लाइन परमिट' की व्यवस्था है अर्थात बिना राज्य सरकार की अनुमति के आप इस क्षेत्र में नहीं जा सकते।पर अगर किसी केन्द्रीय निकाय से जुडे काम से जा रहे हैं तो इसकी जरूरत नहीं पडेगी। फिर मिजोरम में शराबबंदी है। इसलिये बसों के ड्राइवर भागा में ही छककर पी लेते हैं। यहां बस तकरीबन आधा घंटा रूकी रही। थोडी देर बाद मिजोरम का प्रवेश द्वार `वाइरेंगते' आया। इस जगह का नाम नामतौर पर हिंदी में ऐसे ही लिखा मिला। कहीं कहीं बिहारी बन्धओं की कृपा से `भाइरण्टी' भी दिखा। इस नाम के बारे में पता चला कि वाई का अर्थ मिजो में बाहरी होता है `रम' अर्थात भूमि। इस तरह यह नाम मूलत: वाइरमगेट था। अर्थ बाहरी लोगों की जमीन की ओर खुला हुआ द्वार। यहां पहले सभी सवारियों को उतारकर बस की तलासी हुई । फिर थोड़ा और आगे जाने पर सबके पहचान पत्रों और परमिट की जांच हुई।
यह जगह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जानी पहचानी है अगर दुनियां का अर्थ मात्र अमरीका है। कुछ दिनों पहले यहां अमरीकी सैनिक विशेष तरह का प्रशिक्षण लेने आए थे।जैसे अमरीका में आजकल भारतीय सैनिक शहरी युद्ध का प्रशिक्षण लेने जा रहे हैं वैसे ही अमरीकी सैनिकों ने यहां जंगल युद्ध का विशेष प्रशिक्षण लिया था। जबसे अमरीकी सेना पर एशियाई मुल्कों में पुलिस की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी आ पड़ी है तबसे उसे इस तरह के वातावरण से परिचित और अनुकूलित कराया जा रहा है। क्या पता आगे चलकर हमारे मुल्क के इस इलाके की सुरक्षा का ठेका भी अमरीका के ही नाम खुले। बहरहाल इसके लिए वहां विशेष प्रशिक्षण शिविर है। इस केन्द्र का नाम अंग्रेजी में `काउंटर इंसर्जेंसी एंड जंगल वारफेयर स्कूल' है। सेना के अनुवादकों ने इसका अनुवाद `प्रतिविद्रोहिता एवं युद्ध पद्धति स्कूल' किया है। पढकर चौंका। चलिये हिंदी लेखन में विद्रोह का अर्थ हो गया इनसर्जेंसी। भला हुआ कि स्कूल का अनुवाद विद्यालय न करके अनुवादक ने कम से कम विद्यालय की गरिमा तो बचा ली।
जॉच पडताल के बाद बस चली तो असली पहाडी यात्रा शुरू हुई। हरेक मिनट बस या तो बांए झुकती या दांए। इसी गति से मैं भी संतुलन बनाने की कोशिश में उल्टी तरफ झुक जाता। रास्ते में रूकते रूकाते तकरीबन रात के दो ढाई बजे पुन: रूकी तो दस बारह मिजो लडके `मिजो यूथ एशोसिएसन' का बिल्ला लगाये बस में घुसे। पता चला कि यह शासक दल मिजो नेशनल फ्रंट की युवक शाखा है। धीरे धीरे मिजोरम में भी युवकों में बेरोजगारी फैल रही है। ऐसे में शासक दल शराब नशीली दवाइयों वगैरह को खतरा बताकर पेश करता है और इन सब बुराइयों से रक्षा के नाम पर युवकों को काम थमा देता है। इससे उनको काम भी मिल जाता है और कभी कभी दाम भी। पता चला कि चूॅकि मिजोरम इसाई बहुल है इसलिए जान से तो नहीं मारा जाता लेकिन पीटते पीटते जरूर मार डाला जाता है। मिजोरम में सभी गॉव सडक पर ही बसे हैं। ६० के दशक में सेना ने निगरानी की सुविधा के लिये पहाडी गॉवो को उजाडकर सडक पर बसाया था। उस समय अमरीकी सेना भी वियतनाम में यही प्रयोग कर रही थी।गॉंव का नाम था कोनपुई।
आते समय देखा कि यह गॉव तकरीबन लैंड स्लाइड के मुहाने पर बसा है। सिलचर से शिलांग जाते समय जैसा मैने सोनापुर नाम की एक जगह खतरनाक लैंड स्लाइड स्पाट है ठीक वैसा ही इस गॉव के बाहर भी दिखा। संयोग से दोनो ही जगहों पर शिव मंदिर भी बने हैं। दोनो ही जगह कभी दुरूस्त नहीं हो पाती। अखबारों में पढा था कि ऐसी जगहें बी आर टी एफ ह्यसीमा सडक कार्य बल के लिये सोने का अंडा देने वाली मुर्गियां हैं। हर बार मरम्मत के नाम पर बजट पेश और पास किया जाता है। इस कार्य बल ने अपनी परियोजनाओं का नाम पुष्पक रख छोडा है पता नहीं किस कारण।
वहां नौजवानों ने बस की गहन तलाशी की। फिर पौ फटने तक नींद के झोकों ने। पौ फटने पर देखा कि बस दो पहाडों के बीच बने संकरे रास्ते से गुजर रही है। पता चला यह आइजोल गेट है। जब लालडेंगा के नेतृत्व में मिजो लोगों ने ६१ में आइजोल पर हमला कर कब्जा कर लिया था तो भारतीय सेना ने घुसने के लिये पहाड को चीरकर यह द्वार बनाया था। यही वह प्रांत और शहर है जहां हेलिकॉप्टर में लगी मशीनगनों से अपने ही देशवासियों पर गोलियां बरसाई गयी थीं। मुझे `बोंकोन' उतरना था जो पहले घुसी सेना का रिहायसी इलाका था।उतरते ही टैक्सी वाला सीधे `राज्य अतिथि गृह'ले गया।कुल बीस रूपये में।आमतौर पर लोग यहां टैक्सी से चलते हैं। कारण यह कि ये लोग चक्कर में नहीं डालते न ही गलत किराया लेते हैं।सिलचर से आकर यह सिधाई देखना भी हैरतअंगेज रहा। दूसरी कि जगह ठीक आपके उपर है। पर एक के बाद दूसरी तीसरी और चौथी सडक पर पर चढते हुए पहुंचना है। कुल बीस मीटर की ऊंचाई घूमते घूमते एक किलोमीटर का सफर हो जाती है।
आइजोल के निवासी बाहर से आए व्यक्ति से एक सवाल जरूर पूछते हैं।`पहली बार आए हैं' पर हां के तुरंत बाद यहां का मौसम कैसा लगा। उन्हे इस सम्बन्ध में प्रशंसा सुनने की ही उम्मीद होती है। यह उम्मीद गलत भी नहीं है। एक घंटे के भीतर ही सारी रात की थकान के बावजूद मैं तरो ताजा। खिड़की से घाटी के भीतर लगातार बादलों को उतरता देखता रहा। ऐसा कई बार दिखाई पडा कि निचली सडक बादलों से ढकी है। उसके उपर धूप है और तीसरी सडक पर बारिश से बचने के लिये लोग भाग रहे हैं। इतना सुहावना मौसम आइजोल में गर्मी का था।सर्दी के कपडों यानी कंबल और रजाई में आफ सीजन की छूट चल रही थी।कमरे में दुहरे मोटे चीन के बने कंबल में दुबककर मैने दो घंटे की नींद ली।आइजोल मेम् उतरते ही ट्रेनिंग कालेज के प्राचार्य से फोन पर बात की।गुरखा हैं पर पीढियों से यहीं हैं। ऐसी साफ हिन्दी कि सिर चकरा जाय।दस बजे डाइट में कार्यरत लललोमा जी लेने आए। वे भी बडी साफ हिन्दी में बोल रहे थे। मैं उजबक की तरह अंग्रेजी में बोलने पर आमादा था और वे हिन्दी में जवाब दिए जा रहे थे। मिजोरम में जो भी हिंदी बोलता य लिखता है वह सही और शुद्ध ही बोलेगा। वजह लोमा जी ने यह बताई कि अन्य लोग तो काम चलाने के लिये हिंदी बोलते हैं सो उनको टूटी फूटी से ज्यादा की जरूरत नहीं पडती।पर हमें तो सीखनी पडती है। केंद्रीय हिंदी संस्थान और हिंदी प्रचार सभा यहां के विद्यार्थियों को आगरा और वर्धा ले जातें हैं। इससे उनकी हिंदी मुहावरेदार और निखरी हो जाती है।
जारी...
2 comments:
यह शुभ समाचार बहुत अच्छा लगा। मैं भी बहुत दिनो से पूर्वोत्तर भार का भ्रमण करने की योजना बना रहा हूँ।
आगे के लेख की प्रतीक्षा रहेगी ।
घुघूती बासूती
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