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Monday, September 10, 2007

11सितंबर पर देरिदा के विचार

9/11 की घटना महज एक आतंकवादी घटना नहीं है। यह राज्य के बदलते चरित्र की भी निशानी है। चुंकि इस तरह के आतंकवाद का किसी किस्म के मुक्ति आंदोलन से कोई रिश्ता नहीं होता और नही यह व्यवस्था के बदलाव की लड़ाई है। लिहाजा नवउदारवादी राज्य परोक्ष रुप से ऐसे आतंकवाद के पोषक भी होते हैं। दिखने में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध लगता है। पता ही नहीं चलेगा कि किस मोड़ पर राज्य और आतंकवाद एक हो गए जनता अकेले छूटती चली जाती है। मुक्तकामी विचार हास्यास्पद लगने लगते हैं। कई बार तो सत्ता दखल के आंदोलन भी आतंकवादी ठहरा दिए जाते हैं। अब इतिहास की करवट लगने लगी है। राज्य के इस घिनौने चरित्र को अब देरिदा वैचारिक शुन्यता करार रहे हैं । 9/11 के बाद नई करवट लिए दिखते हैं। आतंकवाद की दार्शनिक समझ को आगे बढ़ाने के लिए हम अपने समय के प्रसिद्ध दार्शनिक देरिदा के साक्षात्कार का अंश दे रहे हैं।
आतंकवाद और दर्शन
- देरिदा
बुश युद्ध की बात करते हैं पर वह शत्रु की पहचान करने में असमर्थ हैं। बिना जाने समझे युद्ध की घोषणाएं की गई है। बार-बार कहा जाता है कि अफगानिस्तान की जनता और उसकी सेनाएं अमेरिका की शत्रु नहीं है। मानलिया की बिन लादेन वही हैं लेकिन सबको पता है कि वह अफगान नहीं है और यह भी कि उसके अपने देश ने उसे अस्वीकार कर दिया है। यह भी की उसकी अधिकांश ट्रेनिंग अमेरिका में हुई है। वह अकेला नहीं है जो राज्य परोक्ष रूप से उसकी मदद करते हैं वे अफगानिस्तान राज्य की तरह नहीं करते। जो राज्य आतंकवादी नेटवर्क को शरण देते हैं उनकी पहचान मुश्किल है। अमेरिका, यूरोप, लंदन, बर्लिन ये भी सारी दुनिया के आतंकवादियों की ट्रेनिंग और निर्माण के पोषण स्थल हैं। इसलिए कोई भूगोल कोई क्षेत्रीय सिमांकन इस संदर्भ में प्रासंगिक नही रहा है।
अब तो आतंकवादी हमले के लिए जहाजों और बमों आदि की भी जरूरत नही है रणनीतिक रूप से किसी कंप्यूटर सिस्टम में वायरस या कोई अन्य विध्वंसात्मक तत्व घुसाकर पूरे देश या महाद्वीप के आर्थिक, सैनिक और राजनीतिक संसाधनों को पंगु किया जा सकता है। धरती और आतंक के बीच के संबंधो का रुपांतरण हो गया है। इस बात की जानकारी लेना आवश्यक है ऐसा ज्ञान अर्थात टेक्नो साइंस के कारण संभव हुआ है। विध्वंस के संभावनाओं के मुकाबले 11 सितंबर का काम पिछड़ा माना जाएगा। कल चुपचाप, जल्दबाजी और बिना खुन बहाए बहुत बड़े विध्वंस किए जा सकते हैं। जिसमें किसी महान देश का जीवन खतरे में पड़ सकता है। हो सकता है तब कहा जाय कि 9/11 तो विगत युद्ध के अच्छे दिनों का प्रमाण है। उस समय चीजें बड़ी दिखाई देती थीं पर अब तो उससे ज्यादा बूरी हालत है। हर तरह की नैनोटेक्नोलॉजी पहले से ज्यादा शक्तिशाली, अदृश्य अनियंत्रित है और कहीं भी घुस सकती है। वह माइक्रोवेब और बैक्टरिया की माइक्रोलॉजिकल प्रतिद्वंदी है। हमारे अचेतन को इसका पता है औऱ यही वह अधिक भयावह है।

सुनिए अमेरिका...अमेरिका...

Sunday, September 9, 2007

नए एल्बम 'तन्हाई : लोनली हर्ट्स' की समीक्षा


एल्बम 'तन्हाई : लोनली हर्ट्स'
कलाकार- हरिहरन, भूपिंदर, सुरेश वाडकर , रूप कुमार राठौड़, शान
लेबल- यूनिवर्सल
कीमत- सीडी 150 रु
कवर से लगता है कि हिंदी पॉप का ये अलबम उस जनरेशन के लिए बनाया गया है जो एमटीवी कल्चर और ग़ज़ल-सूफ़ी दोनों के कहीं बीच में आती है , या कहें कि थोड़ा-थोड़ा दोनों से जुड़ी है। नाम भी 'दाग : द फायर' मार्का है, लेकिन गानेवालों में हरिहरन , सुरेश वाडकर, भूपिंदर और शुभा मुद्गल के नाम आकर्षित करते हैं। बकौल प्रोड्यूसर्स, इस सीडी में 10 soulful love songs हैं। देखते हैं क्या निकलता है।
पहला ट्रैक है हरिहरन का गाया
- 'कुछ देर तक, कुछ दूर तक तो साथ चलो '। लिखा है गीतकार अंजान के सुपुत्र और जाने-माने बॉलीवुडिया गीतकार समीर ने। हरिहन बड़ी रेंज वाले गायक है लेकिन शमीर टंडन की इस कंपोज़िशन में दिखाने लायक बहुत कुछ है नहीं। औसत सा गीत है। रिदम है 16 बीट्स। ड्रम्स का इस्तेमाल। सॉफ्ट सा पॉप। बीच में दक्षिण भारतीय शैली में रुद्र वीणा जैसा कुछ बजा है- वो अच्छा लगा है।
दूसरा ट्रैक है किसी संगीत साहब का गाया
- I am so lonely. समीर ने ये गाना हिंग्लिश में लिखा है। रिदम का बेस 16 बीट्स ही है, लेकिन थोड़ा वेस्टर्न टच देने की कोशिश की गई है। संगीत ने ठीक-ठाक गाया है। सुनते हुए दृश्य ऐसा बनता है जैसे किसी क्लब में कोई फुल -टाइमर किस्म का प्रेमी कोने में टेबल पर बैठी हसीना के लिए गिटार टाइप्स बजाते हुए मोहब्बत का इज़हार कर रह है।
तीसरा ट्रैक है शान का गाया
- आओ इस तरह जिया जाए। राग शिवरंजनी पर आधारित है। वही शिवरंजनी जिसमें मेरे नैना सावन भादों, जाने कहां गए वो दिन, दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर और ग़म दिए मुस्तकिल जैसे पॉपुलर गाने बने हैं। यही वजह से कि इस गाने की धुन बड़ी सुनी -सी लगती है। शिवरंजनी दरअसल दर्द या Pathos पैदा करने में बड़ी असरदार साबित होती है। भूपाली के सा रे ग प ध सां में सिर्फ ग को कोमल कर दीजिए - देखिए कैसे पूरी तासीर बदल जाती है। बहरहाल- ये भी एक औसत सा गीत है जो अच्छा लगता है तो इसलिए कि जिन सुरों पर ये आधारित है वो राग ही हिट है।
चौथा ट्रैक है रूप कुमार राठौड़ का गाया
- जहां तेरा चेहरा दिखाई न दे। शुरू में ऊंचे सुरों में आलाप है। सुर राग भूपकली ( अज़ीज़ नाज़ां का- चढ़ता सूरज धीरे-धीरे, मेहदी हसन का - अबके हम बिछड़े) के आस-पास घूमते हैं। बैरागी भैरव और अहीर भैरव की भी याद आती है। सुनते हुए फिल्म 'एक दूजे के लिए' का हिट गीत 'बाली उमर को सलाम ' के शुरू में अनूप जलोटा का गाया- कोशिश करके देख ले.. भी याद आता है। रूप कुमार राठौड़ काफी क्षमतावान गायक हैं। गाने में कई बार ऊंचे सुरों में काफी डूबा हुआ आलाप लिया है जो सुनने में अच्छा लगता है। कई अवॉर्ड जीत चुके जाने- माने गीतकार समीर इस गाने में एक जगह लिखते हैं- सिवा तेरे ज़िंदगी, है एक सेहरा। सही लाइन होती - बिना तेरे ज़िंदगी, है एक सेहरा। एक सवाल- मीडियॉकर ही अक्सर पॉपुलर क्यों होता है ? बहरहाल.. रूप कुमार राठौड़ ने अपनी गायकी से ये गाना सुनने लायक बना दिया है।
इसके बाद है सुरेश वाडकर की आवाज़ में
- तुमसे पहले मेरी जिंदगी में। समीर ने एक घटिया गाना लिखा है, और शमीर टंडन से उतना ही घटिया कंपोज़ किया है। सुरेश वाडकर जैसे उम्दा सिंगर ये गाना गाने को क्यों राजी हुए- पता नहीं।
छठवां ट्रैक है भूपिंदर का गाया
- गुज़रता नहीं चैन से एक पल। गाना शुरू होता है फीमेल वॉएस में राग पूरिया धनाश्री ( मेरी सांसों को जो महका रही है, हाय रामा ये क्या हुआ..) में खूबसूरत आलाप के साथ। भूपिंदर की आवाज़ इस गाने में अच्छी लगी है। फिलर म्यूजिक में सितार बहुत अच्छा बजा है। बीच -बीच में महिला का आलाप जारी रहता है। गाना अच्छा बना है।
सोनी पर जब पहली बार इंडियन आइडल शुरू हुआ था तो जवाब में स्टार प्लस ने वसुपर सिंगर कंपटिशन कराया था। इसमें अव्वल रहे थे रवींद्र उपाध्याय। अगला गीत
- वो रात दिन के किस्से , रवींद्र की आवाज़ में है। साथ में गा रहे हैं कोई शबाब साबरी। फॉरवर्ड कर देने लायक गाना है।
अगला गाना है शान के पुराने अलबम तन्हा दिल का टाइटिल ट्रैक
- तन्हा दिल। शान का ये गाना ठीक-ठाक चल गया था।
नौवां ट्रैक है शुभा मुद्गल का
- जग सूना सूना लागे। ये भी पुराने अलबम 'नाचूं सारी -सारी रात' से उधार लिया गया है। ये अलबम कब आया, कब गया पता नहीं। गाने में गिटार की लीड के साथ देर -देर तक फिलर म्यूजिक बजता रहता है। मुखड़े के बाद स्थाई का इंतज़ार लंबा लगता है। शुभा मुद्गल की अपनी अलग आवाज़ है, गायकी का अपना स्टाइल है। सो, गाना ठीक ठाक सा बन गया है। लेकिन इसका म्यूज़िक बोर करता है।
अंत में है सारंगी के उस्ताद सुल्तान खान का गाया
- कटे नाहीं रात मोरी, पिया तोरे कारन -कारन। पुराने अलबम 'भूमि' से लिया गया है। इस गीत को लिखा भी है सुल्तान खान ने और कंपोज़ भी उन्होने ही किया है। गाने में सारंगी का अच्छा इस्तेमाल है , ज़ाहिर है..। आपने शायद ध्यान दिया हो- सुल्तान खां साहब की उच्चारण की अपनी अदा है। कायदे से इसे दोष बोलना चाहिए। रात को 'राति' बोलते हैं, मनवा को 'मनिवा', चैन को 'चैने'.. .। बहरहाल, ये गीत बहुत मधुर बना है। आपने सुना भी हो शायद।
कुल मिलाकर ये अलबम 'तन्हाई' पैसा वसूल तो नहीं है, लेकिन लेकर पछतावा भी नहीं होगा।
#गिरिजेश