Thursday, September 4, 2008
सिक्रेट लेटर की कॉपी
कुछ लोगों ने अमेरिका-भारत परमाणु समझौते के बारे में अमेरिकी सरकार के उस सिक्रेट लेटर की कॉपी मांगी है। जिसे हम पीडीएफ फाइल में उपलब्ध करा रहे हैं। लेटर की ओरिजनल कॉपी के लिए क्लिक करें।
जरूरी है वाम एकता
हमारे पास अमेरिकी परमाणु समझौते को लेकर एक राजनीतिक टिप्पणी आई है जिसमें साफतौर पर राजनीतिक विकल्प के बतौर वाम की जरूरत पर बल दिया गया है। दलाल किस्म की राजनीति का अंत होना चाहिए और इसका विकल्प वाम पार्टियां ही हो सकती है।
कोई जितना चीखे चिल्लाए लेकिन परमाणु मुद्दे पर दुरदर्शिता तो सबसे ज्यादा वामपंथ ने ही दिखाई है। मौजूदा दौर में पहले की तरह चीजें घालमेल में नहीं बल्कि सीधे-सीधे हल हो रही हैं। सत्ता में उदारवाद या ढुलमुलपना गायब हो रहा है। लिहाजा भारत में भी वामएकता की जरूरत महसूस की जा रही है। भारतीय जनता को मुनाफाखोर राजनीतिक लॉबी से बचाने के लिए वाम को यह जिम्मेदारी उठानी ही चाहिए।
अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर आज वियना में बैठक शुरू हो चुकी है। कांग्रेस नेता अकबकाए हुए विरोधाभासी बयान जारी कर रहे हैं। परमाणु उर्जा आयोग के सर्वेसर्वा अनिल काकोडकर का कहना है कि इस लेटर के बारे में उन्हे पहले से पता था। लेकिन मुलायम सिंह की खोपड़ी आगामी चुनावों और इस नए खुलासे से चकरा गई है। परमाणु मुद्दे पर सरकार बचाने वाले आधुनिकता के प्रतीक दलाल और जोकर सीन से गायब हैं। लेकिन सवाल उठता है कि भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर इतनी उतावली क्यों है। जिस दिन सरकार का शक्ति परीक्षण चल रहा था उस दिन तो आडवाणी ने साफतौर पर कहा कि हम डील के खिलाफ नहीं बल्कि सरकार के खिलाफ हैं। फिर उसे सिक्रेट लेटर या सेफगार्ड की चिंता क्यों होने लगी। कांग्रेस का दूसरा संस्करण अपने को सत्ता के ज्यादा करीब समझ रहा है। कोई जितना चीखे चिल्लाए लेकिन परमाणु मुद्दे पर दुरदर्शिता तो सबसे ज्यादा वामपंथ ने ही दिखाई है। मौजूदा दौर में पहले की तरह चीजें घालमेल में नहीं बल्कि सीधे-सीधे हल हो रही हैं। सत्ता में उदारवाद या ढुलमुलपना गायब हो रहा है। लिहाजा भारत में भी वामएकता की जरूरत महसूस की जा रही है। भारतीय जनता को मुनाफाखोर राजनीतिक लॉबी से बचाने के लिए वाम को यह जिम्मेदारी उठानी ही चाहिए।
Wednesday, September 3, 2008
शहीद चंद्रशेखर की मां कौशल्या जी का निधन
कौशल्या जी किडनी की बीमारी से पीड़ित थीं। जिन्हे इलाज के लिए कुछ दिन पहले पीजीआई लखनऊ लाया गया था।
कौशल्या जी ने चंद्रशेखर के हत्यारों के खिलाफ चली लड़ाई का नेतृत्व किया। चंद्रशेखर की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री देवगौड़ा सरकार से दिए गए अनुदान को नकारते हुए उन्होने जो पत्र लिखा वह एक मिसाल बन गया। हम बतौर श्रद्धांजली इस पत्र को दोबारा छाप रहे हैं।
प्रधानमंत्री महोदय,
आपका पत्र और बैंक ड्राफ़्ट मिला।
आप शायद जानतें हों कि चंद्रशकर मेरी एकलौती संतान था। इसके सैनिक पिता जब शहीद हुये थे ,वह बच्चा ही था। आप जानिये, उस समय मेरे पास मात्र १५० रुपये थे। तब भी मैंने किसी से कुछ नहीं मांगा था। अपनी मेहनत और ईमानदारी की कमाई से मैंने उसे राजकुमारो की तरह पाला था। पाल-पोसकर बड़ा किया था और बढि़या से बढिय़ा स्कूल में पढ़ाया था। मेहनत और ईमानदारी की वह कमाई अभी भी मेरे पास है। कहिये, कितने का चेक काट दूं!
लेकिन महोदय, आपको मेहनत और ईमानदारी से क्या लेना-देना! आपको मेरे बेटे की ‘दुखद मृत्यु’ के बारे में जानकर गहरा दुख हुआ है। आपका यह कहना तो हद है महोदय! मेरे बेटे की मृत्यु नहीं हुयी है, उसे आपके ही दल के गुंडे-माफ़िया डान शहाबुद्दीन ने -जो दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव का दुलरुआ भी है- खूब सोच-समझकर व योजना बनाकर मरवा डाला है। लगातार खुली धमकी देने के बाद, शहर के भीड़-भाड़ भरे चौराहे पर सभा करते हुये , गोलियों से छलनी कर देने के पीछे कोई ऊंची साजिश है। प्रधानमंत्री महोदय! मेरा बेटा शहीद हुआ है। वह दुर्घटना में नहीं मरा है।
मेरा बेटा कहा करता था कि मेरी मां बहादुर है। वह किसी से डरती नहीं है। वह किसी भी लोभ-लालच में नहीं पड़ती। वह कहता था- मैं एक बहादुर मां का बहादुर बेटा हूं। शहाबुद्दीन ने लगातार मुझको कहलवाया कि अपने बेटे को मना करो नहीं तो उठवा लूंगा। मैंने जब यह बात उसे बतलायी तब भी उसने यही कहा था। ३१ मार्च की शाम जब मैं भागी-भागी अस्पताल पहुंची ,वह इस दुनिया से जा चुका था। मैंने खूब गौर से उसका चेहरा देखा, उस पर कोई शिकन नहीं थी। डर या भय का कोई चिन्ह नहीं था। एकदम से शांत चेहरा था उसका। प्रधानमंत्री महोदय! लगता था वह अभी उठेगा और चल देगा। जबकि, प्रधानमंत्री महोदय, इसके सिर और सीने में एक-दो नहीं सात-सात गोलियां मारीं गयीं थीं। बहादुरी में उसने मुझे भी पीछे छोड़ दिया।
मैंने कहा न कि वह मरकर अमर है। उस दिन से ही हजारों छात्र- नौजवान, जो उसके संगी-साथी हैं, जो हिंदू भी हैं मुसलमान भी, मुझसे मिलने आ रहे हैं। उन सबमें मुझे वह दिखाई देता है। हर तरफ़, धरती और आकाश तक, मुझे हजारों-हजार चंद्रशेखर दिखाई देते हैं। वह मरा नहीं है, प्रधानमंत्री महोदय!
इसीलिये, इस एवज में कोई भी राशि लेना मेरे लिये अपमानजनक है। आपके कारिंदे पहले भी आकर लौट चुके हैं। मैंने उनसे भी यही सब कहा था। मैंने उनसे कहा था कि तुम्हारे पास चारा घोटाला का, भूमि घोटाला का अलकतरा घोटाला का जो पैसा है, उसे अपने पास ही रखो। यह उस बेटे की कीमत नहीं है जो मेरे लिये सोना था, रतन था, सोने और रतन से भी बढ़कर था।
आज मुझे यह जानकर और भी दुख हुआ कि इसकी सिफ़ारिश आपके गृहमंत्री इंद्रजीत गुप्त ने की थी। वे उस पार्टी के महासचिव रह चुके हैं जहां से मेरे बेटे ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। मुझ अपढ़-गंवार मां के सामने आज यह बात और भी साफ़ हो गयी कि मेरे बेटे ने बहुत जल्दी ही उनकी पार्टी क्यों छोड़ दी। इस पत्र के माध्यम से मैं आपके साथ-साथ उन पर भी लानतें भेज रहीं हूं जिन्होंने मेरी भावनाऒं के साथ यह घिनौना मजाक किया है और मेरे बेटे की जान की ऐसी कीमत लगवाई है।
एक ऐसी मां के लिये -जिसका इतना बड़ा और एकलौता बेटा मार दिया गया हो, और जो यह भी जानती हो कि उसका कातिल कौन है- एकमात्र काम यह हो सकता है , वह यह है कि उसके कातिल को सजा मिले। मेरा मन तभी शांत होगा महोदय! उसके पहले कभी नहीं, किसी भी कीमत पर नहीं। मेरी एक ही जरूरत है, मेरी एक ही मांग है- अपने दुलारे शहाबुद्दीन को ‘किले’ से बाहर करो। या तो उसे फ़ांसी दो ,या फ़िर लोगों को यह हक दो कि वे उसे गोली से उड़ा दें।
मुझे पक्का विश्वास है प्रधानमंत्री महोदय! आप मेरी मांग पूरी नहीं करेंगे। भरसक यही कोशिश करेंगे कि ऐसा न होने पाये। मुझे अच्छी तरह मालूम है आप किसके तरफ़दार हैं। मृतक के परिवार को तत्काल राहत पहुंचाने हेतु एक लाख रुपये का यह बैंक ड्राफ़्ट आपको ही मुबारक।
कोई भी मां अपने बेटे के कातिलों से सुलह नहीं कर सकती।
कौशल्या देवी
(शहीद चंद्रशेखर की मां_)
बिंदुसार सीवान
१८ अप्रैल, १९९७
कौशल्या जी ने चंद्रशेखर के हत्यारों के खिलाफ चली लड़ाई का नेतृत्व किया। चंद्रशेखर की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री देवगौड़ा सरकार से दिए गए अनुदान को नकारते हुए उन्होने जो पत्र लिखा वह एक मिसाल बन गया। हम बतौर श्रद्धांजली इस पत्र को दोबारा छाप रहे हैं।
प्रधानमंत्री महोदय,
आपका पत्र और बैंक ड्राफ़्ट मिला।
आप शायद जानतें हों कि चंद्रशकर मेरी एकलौती संतान था। इसके सैनिक पिता जब शहीद हुये थे ,वह बच्चा ही था। आप जानिये, उस समय मेरे पास मात्र १५० रुपये थे। तब भी मैंने किसी से कुछ नहीं मांगा था। अपनी मेहनत और ईमानदारी की कमाई से मैंने उसे राजकुमारो की तरह पाला था। पाल-पोसकर बड़ा किया था और बढि़या से बढिय़ा स्कूल में पढ़ाया था। मेहनत और ईमानदारी की वह कमाई अभी भी मेरे पास है। कहिये, कितने का चेक काट दूं!
लेकिन महोदय, आपको मेहनत और ईमानदारी से क्या लेना-देना! आपको मेरे बेटे की ‘दुखद मृत्यु’ के बारे में जानकर गहरा दुख हुआ है। आपका यह कहना तो हद है महोदय! मेरे बेटे की मृत्यु नहीं हुयी है, उसे आपके ही दल के गुंडे-माफ़िया डान शहाबुद्दीन ने -जो दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव का दुलरुआ भी है- खूब सोच-समझकर व योजना बनाकर मरवा डाला है। लगातार खुली धमकी देने के बाद, शहर के भीड़-भाड़ भरे चौराहे पर सभा करते हुये , गोलियों से छलनी कर देने के पीछे कोई ऊंची साजिश है। प्रधानमंत्री महोदय! मेरा बेटा शहीद हुआ है। वह दुर्घटना में नहीं मरा है।
मेरा बेटा कहा करता था कि मेरी मां बहादुर है। वह किसी से डरती नहीं है। वह किसी भी लोभ-लालच में नहीं पड़ती। वह कहता था- मैं एक बहादुर मां का बहादुर बेटा हूं। शहाबुद्दीन ने लगातार मुझको कहलवाया कि अपने बेटे को मना करो नहीं तो उठवा लूंगा। मैंने जब यह बात उसे बतलायी तब भी उसने यही कहा था। ३१ मार्च की शाम जब मैं भागी-भागी अस्पताल पहुंची ,वह इस दुनिया से जा चुका था। मैंने खूब गौर से उसका चेहरा देखा, उस पर कोई शिकन नहीं थी। डर या भय का कोई चिन्ह नहीं था। एकदम से शांत चेहरा था उसका। प्रधानमंत्री महोदय! लगता था वह अभी उठेगा और चल देगा। जबकि, प्रधानमंत्री महोदय, इसके सिर और सीने में एक-दो नहीं सात-सात गोलियां मारीं गयीं थीं। बहादुरी में उसने मुझे भी पीछे छोड़ दिया।
मैंने कहा न कि वह मरकर अमर है। उस दिन से ही हजारों छात्र- नौजवान, जो उसके संगी-साथी हैं, जो हिंदू भी हैं मुसलमान भी, मुझसे मिलने आ रहे हैं। उन सबमें मुझे वह दिखाई देता है। हर तरफ़, धरती और आकाश तक, मुझे हजारों-हजार चंद्रशेखर दिखाई देते हैं। वह मरा नहीं है, प्रधानमंत्री महोदय!
इसीलिये, इस एवज में कोई भी राशि लेना मेरे लिये अपमानजनक है। आपके कारिंदे पहले भी आकर लौट चुके हैं। मैंने उनसे भी यही सब कहा था। मैंने उनसे कहा था कि तुम्हारे पास चारा घोटाला का, भूमि घोटाला का अलकतरा घोटाला का जो पैसा है, उसे अपने पास ही रखो। यह उस बेटे की कीमत नहीं है जो मेरे लिये सोना था, रतन था, सोने और रतन से भी बढ़कर था।
आज मुझे यह जानकर और भी दुख हुआ कि इसकी सिफ़ारिश आपके गृहमंत्री इंद्रजीत गुप्त ने की थी। वे उस पार्टी के महासचिव रह चुके हैं जहां से मेरे बेटे ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। मुझ अपढ़-गंवार मां के सामने आज यह बात और भी साफ़ हो गयी कि मेरे बेटे ने बहुत जल्दी ही उनकी पार्टी क्यों छोड़ दी। इस पत्र के माध्यम से मैं आपके साथ-साथ उन पर भी लानतें भेज रहीं हूं जिन्होंने मेरी भावनाऒं के साथ यह घिनौना मजाक किया है और मेरे बेटे की जान की ऐसी कीमत लगवाई है।
एक ऐसी मां के लिये -जिसका इतना बड़ा और एकलौता बेटा मार दिया गया हो, और जो यह भी जानती हो कि उसका कातिल कौन है- एकमात्र काम यह हो सकता है , वह यह है कि उसके कातिल को सजा मिले। मेरा मन तभी शांत होगा महोदय! उसके पहले कभी नहीं, किसी भी कीमत पर नहीं। मेरी एक ही जरूरत है, मेरी एक ही मांग है- अपने दुलारे शहाबुद्दीन को ‘किले’ से बाहर करो। या तो उसे फ़ांसी दो ,या फ़िर लोगों को यह हक दो कि वे उसे गोली से उड़ा दें।
मुझे पक्का विश्वास है प्रधानमंत्री महोदय! आप मेरी मांग पूरी नहीं करेंगे। भरसक यही कोशिश करेंगे कि ऐसा न होने पाये। मुझे अच्छी तरह मालूम है आप किसके तरफ़दार हैं। मृतक के परिवार को तत्काल राहत पहुंचाने हेतु एक लाख रुपये का यह बैंक ड्राफ़्ट आपको ही मुबारक।
कोई भी मां अपने बेटे के कातिलों से सुलह नहीं कर सकती।
कौशल्या देवी
(शहीद चंद्रशेखर की मां_)
बिंदुसार सीवान
१८ अप्रैल, १९९७
आखिर ठग ही लिया अमेरिका ने....
जिसका डर था वही हुआ। न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप यानी एनएसजी की महत्वपूर्ण बैठक से ठीक एक दिन पहले अमेरिकी सरकार के उस सिक्रेट लेटर का खुलासा हो गया है जिसमें कहा गया है कि भारत अगर परमाणु परीक्षण करता है तो अमेरिका उस पर प्रतिबंध लगा सकता है। उस ईंधन की सप्लाई रोकने की आजादी है। मनमोहन सिंह सरकार चींख चीखकर यह बता रही थी कि हमने देश की आजादी को गिरवी नहीं रखा है और हम परमाणु परीक्षण के लिए स्वतंत्र हैं। सिक्रेट लेटर का खुलासा भारतीय राजनेताओं को समझौते की असलियत बताने के लिए नहीं बल्कि अमेरिकी कांग्रेस के उन विरोधी सदस्यों के लिए है जिन्हे यह आशंका थी कि भारत को इतनी छूट क्यों दी जा रही है। इस लेटर के जरिए इस शंका को दूर किया गया है कि आखिर अमेरिका एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देश के प्रति उदारता क्यों दिखा रहा है। समझौते की शर्त अमेरिका के पक्ष में है।
पिछले नौ महीने से यह लेटर सिक्रेट था। जिसमें अमेरिका ने एनएसजी से भारत पर कुछ प्रतिबंध लागने की भी अपील की गई थी। अमेरिकी सरकार के एक बड़े अधिकारी ने कहा है कि लेटर को अमेरिकी सरकार ने इसलिए छुपाया था कि कहीं इससे भारत की मनमोहन सरकार गिर न जाए। वाशिंग्टन पोस्ट के रिपोर्टर का कहना है कि भारतीय वार्ताकारों और मनमोहन सिंह सरकार को इस शर्त के बारे में पहले से पता था।
ग्लेन केसलर की वाशिंग्टन पोस्ट में छपी पूरी रिपोर्ट पढ़ें-
In Secret Letter, Tough U.S. Line on India Nuclear Deal
By Glenn Kessler
Washington Post Staff Writer
Wednesday, September 3, 2008; A10
The United States will not sell sensitive nuclear technologies to India and would immediately terminate nuclear trade if New Delhi conducted a nuclear test, the Bush administration told Congress in correspondence that has remained secret for nine months.
The correspondence, which also appears to contradict statements by Indian officials, was made public yesterday by Rep. Howard L. Berman (D-Calif.), chairman of the House Foreign Affairs Committee, just days before the 45-nation Nuclear Suppliers Group meets again in Vienna to consider exempting India from restrictions on nuclear trade as part of a landmark U.S.-India civil nuclear deal.
The NSG, which governs trade in reactors and uranium, poses a key hurdle for the U.S-India pact. The group operates by consensus, allowing even small nations to block or significantly amend any agreement. The United States has pressed the NSG to impose few conditions on India, even though it has tested nuclear weapons and has not signed the nuclear Non-Proliferation Treaty.
A significant group of nations balked at the proposal when the NSG first discussed it two weeks ago. Berman's release of the correspondence could make approval even more difficult because it demonstrates that U.S. conditions for nuclear trade with India are tougher than what the United States is requesting from the NSG on India's behalf.
About 20 nations offered more than 50 amendments to the U.S.-proposed draft text, focusing on terminating trade if India resumes testing and bans on the transfer of sensitive technologies.
The correspondence released by Berman is "going to reinforce the views of many states," said Daryl G. Kimball, executive director of the Arms Control Association, which opposes the U.S.-India agreement. "There is no reason why this should not be an NSG-wide policy."
The correspondence concerned 45 highly technical questions that members of Congress posed about the deal. In 2006, Congress passed a law, known as the Hyde Act, to provisionally accept the agreement. But some lawmakers raised concerns about whether a separate implementing agreement negotiated by the administration papered over critical details to assuage Indian concerns. The questions were addressed in a 26-page letter sent to Berman's predecessor, the late Rep. Tom Lantos (D-Calif.), on Jan. 16.
The answers were considered so sensitive, particularly because debate over the agreement in India could have toppled the government of Prime Minister Manmohan Singh, that the State Department requested they remain secret even though they were not classified.
Lynne Weil, a spokeswoman for Berman, said he made the answers public yesterday because, if NSG approval is granted, the U.S-India deal soon would be submitted to Congress for final approval and "he wants to assure that Congress has the relevant information."
In India, Singh and his aides have insisted that the deal would not constrain the country's right to nuclear tests and would provide an uninterrupted supply of fuel to India's nuclear reactors. In August 2007, Singh told Parliament, "The agreement does not in any way affect India's right to undertake future nuclear tests, if it is necessary."
The State Department's letter to Lantos gives a different story. It says the United States would help India deal only with "disruptions in supply to India that may result through no fault of its own," such as a trade war or market disruptions. "The fuel supply assurances are not, however, meant to insulate India against the consequences of a nuclear explosive test or a violation of nonproliferation commitments," the letter said.
The letter makes clear that terminating cooperation could be immediate and was within U.S. discretion, and that the supply assurances made by the United States are not legally binding but simply a commitment made by President Bush.
The letter also stated that the "U.S. government will not assist India in the design, construction or operation of sensitive nuclear technologies," even though the Hyde Act allowed transfers of such technology under certain circumstances. The U.S. government had no plans to seek to amend the deal to allow sensitive transfers, the letter said.
The administration is eager for NSG approval this week because there is a narrow window for final congressional action before lawmakers adjourn this month, although many of them say the prospects for quick action remain dim.
Reflecting the importance of the U.S.-India deal to Bush's foreign policy legacy, Secretary of State Condoleezza Rice is dispatching two top officials -- William J. Burns, undersecretary of state for political affairs, and John Rood, acting undersecretary of state for arms control and international security -- to the NSG session.
Concerns about the deal have been raised by a group of mostly smaller states, led by Ireland and New Zealand. But this week China also publicly urged caution, saying in a foreign ministry statement that the NSG must "strike a balance between nuclear nonproliferation and peaceful use of energy."
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