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Wednesday, May 14, 2008

जसम की ओर से साहित्यकार अमरकांत जी को सहयोग


जन संस्कृति मंच के प्रदेश अध्यक्ष डॉ0 राजेन्द्र कुमार और महासचिव प्रणय कृष्ण के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल अमरकांत जी से मिला और उन्हें 50,000 का चेक प्रदान किया। प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता चितरंजन सिंह, हिंदी विभाग (इ0वि0वि0) में प्राध्यापक सूर्यनारायण, भौतिकी विभाग (इ0वि0वि0) के प्राध्यापक विवेक तिवारी समेत अन्य लोग भी शामिल थे।
इस मौके पर अमरकांत जी ने कहा कि जसम जैसे संगठन यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं यह बेहद खुशी की बात है। लेखकों को संगठनबद्ध होकर अपने अधिकारों के लिए आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि हिंदी का पाठक समुदाय अभी अपने लेखकों के लिए सद्भावनापूर्ण व्यवहार रखता है।
जसम के प्रदेश अध्यक्ष डॉ0 राजेन्द्र कुमार ने कहा कि साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत निष्ठावानों और उनके शुभैषियों को अपने संगठित प्रयासों पर ही भरोसा करना होगा। जसम ने इसी उद्देश्य से अपनी `सांस्कृतिक संकुल´ योजना के तहत अपने सदस्यों-साथियों के आपसी सहयोग से स्थायी कोष बनाया है। साहित्यकारों-संस्कृतिकर्मियों को संकट में यथेष्ट राशि देने की इसी योजना के तहत अमरकांत जी को यह राशि दी गयी है। जसम ऐसे संस्कृतिकर्मियों को भविष्य में भी इस कोष से सहायता देगा जिससे वे अपनी जनता की आशाओं-आकांक्षाओं और असंतोषों को अपनी रचना के माध्यम से चििन्हत करने व उनके संघर्षों को बल देने के अपने कार्य में आर्थिक बाधा न महसूस करें। उन्होंने बताया कि `सांस्कृतिक संकुल´ की इसी योजना के तहत बिना सरकारी सहायता के जन-आधारित स्वतंत्र रंगमंडल और प्रकाशन गृह भी शुरू किया जाएगा।
महासचिव जसम, प्रणयकृष्ण ने कहा कि अमरकांत जी जैसे महान साहित्यशिल्पी की यातना और यंत्रणा हम लोगों से इतने दिनों तक छुपी रही, हमारे लिए यह अफसोस की बात है। ये उनके स्वाभिमान का परिचायक भी है। उन्होंने कहा कि अमरकांत जी की रचनाएं जहां-जहां पाठ्यक्रमों में शामिल हैं, वहां से और प्रकाशकों से उनकी पूरी रॉयल्टी मिलनी चाहिए। सरकारी खरीद की सूचियों में उनके संग्रह अनिवार्यता से शामिल किए जाए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा जन संस्कृति मंच अमरकांत जी के पुत्र द्वारा प्रकाशित उनकी कृतियों के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था एक अभियान के तौर पर अपने हाथ में लेगा।

अमरकांत
व्यक्तिगत जीवन - अमरकान्त का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगारा गाँव में हुआ। बलिया में पढ़ते समय ही उनका सम्पर्क स्वतन्त्रता आंदोलन के सेनानियों से हुआ। सन् १९४२ में वे स्वतन्त्रता-आंदोलन से जुड़ गए।

हिन्दी साहित्य - इनका साहित्य जीवन एक पत्रकार के रूप में हुआ। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। कहानीकार के रूप में अमरकान्त की ख्याति सन् १९५५ में 'डिप्टी कलेक्टरी' कहानी से हुई। उनकी कहानियों में मध्यवर्गीय जीवन का अत्यंत मार्मिक और मनोवैज्ञानिक चित्रण मिलता है।

कहानी-संग्रह - जिन्दगी और जोंक , देश के लोग, मौत का नगर , कुहासा

उपन्यास - सूखा पत्ता, काले उजले दिन, सुख जीवी, बीच की दीवार हिन्दी लेखक