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Friday, November 23, 2007

नारीर कोनो देश नाई....-तस्लीमा नसरीन


-प्रसून
धार्मिक कट्टरवाद एक बार फिर नंदीग्राम के वास्तविक मुद्दे से लोगों को भटकाने की कोशिश में है। कुछ सिरफिरे लोगों ने तस्लीमा नसरीन को कोलकाता छोड़ने की धमकी क्या दी सीपीएम सरकार के लिए मुंह मांगी मुराद मिल गई । उसने झटपट निर्णय लेते हुए नंदीग्राम से अपने गुंडे तो नहीं हटाए लेकिन तस्लीमा नसरीन को जरूर यहां से हटा दिया। तस्लीमा को राजस्थान भेज दिया। क्या यह राज्य इतना भी सक्षम नहीं है कि वो एक लेखिका को कुछ सिरफिरे लोगों से बचा सके, या कि उसका यह कदम इसलिए भी जरुरी था कि तस्लीमा भी नंदीग्राम औऱ सिंगूर के संदर्भ में राज्य सरकार की नीतियों का विरोध किया।
हालांकि सीपीएम का ये कदम चौंकाने वाला नहीं है। अक्सर राज्य या देश जब कोई आर्थिक स्वाभिमान का मुद्दा शुरू होता है और जनता उस व्यवस्था के प्रति विद्रोह करती है तो धार्मिक पोंगापंथी पुरानी व्यवस्था को बचाने के लिए आस्था के सवाल को खड़ा कर देते हैं। ये किसी एक देश या राज्य की बात नहीं है। अब सीपीएम जल्द ही कांग्रेस में विलय की तैयारी करने वाली है। नई आर्थिक नीति पर तो वह पहले ही घुटने टेक चुकी है अब सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता भी उसके लिए कोई मायने नहीं रखते। फिर वाम के नाम पर इस पार्टी की जरूरत ही क्या है?
निर्वासन का दर्द झेल रही तस्लीमा नसरीन से जब पूछा गया कि वो पश्चिम बंगाल में ही क्यों रहना चाहती हैं तो उन्होने कहा था कि मैं अपने वतन के पास रहना चाहती हुं कुछ वैसी भाषा सुनना चाहती हुं और पश्चिम बंगाल में रहते हुए मुझे ऐहसास होता है मैं अपने देश के बहुत करीब हूं।
महाश्वेता देवी और शंख घोष ने राज्य सरकार के इस कदम की निंदा करते हुए कहा है कि इससे कट्टरपंथियों का हौसला बढ़ेगा। लेकिन दर्जन भर प्रगतिशील साहित्यकारों वाले सीपीएम और सीपीआई के साहित्यिक संगठन अपनी सरकार के इस शर्मनाक कदम पर चूं तक नही कर रहे हैं। वैसे तो उन्होने नंदीग्राम पर भी कुछ लिखने या बोलने से परहेज किया है। लेकिन अब तो सवाल उठेंगे ही कि आखिर हम कट्टरपंथियों का बोझ ढोते हुए कौन सा प्रगतिशील समाज रचना चाहते हैं।
कुछ लोग तस्लीमा के विचारों को महज इस्लाम से जोड़कर देखते हैं लेकिन ऐसा नहीं है वो हर उस धार्मिक कट्टरता पर हमला करती हैं जो आम आदमी खासकर महिलाओं के खिलाफ है। उनका मानना है कि धर्म अपने मूल समझ में ही महिला विरोधी है।
तभी तो उन्होने लेनिन की मूर्ति तोड़ने और उसे कुचलने वाली घटना पर बयान दिया था कि यह केवल लेनिन की मूर्ति का अपमान नहीं हो रहा है यह महिलाओं की मुक्ति के विचारों को कुचला जा रहा है।
हम तमाम प्रगतिशील ताकतों से सीपीएम सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना करने का अनुरोध करते हैं।

तस्लीमा की आवाज में उनके विचारो को सुनने के लिए क्लिक करें..

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