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अमेरिका में भारत के राजदूत रोनिन सेन पर दबाव कुछ इस तरह बढ़ा कि वो कुढ कर अकबक बोलने लगे। कहा कि
इसे (परमाणु समझौता) यहाँ राष्ट्रपति और वहाँ कैबिनेट ने पारित किया, तो फिर सिरकटे मुर्गे (हेडलेस चिकन) की तरह इधर उधर क्या भागना.''जैसे ये दोनों संस्थाएं या व्यक्ति ही इन देशों की किस्मत लिखेंगी।
अब इस बयान ने मामले को नया रुख दे दिया है। हालांकि लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने विपक्षी दलों की राजदूत को वापस बुलाने की माँग पर जवाब दिया है कि सिर्फ़ अख़बार की ख़बर के आधार पर कार्रवाई नहीं की जा सकती.
उन्होंने कहा कि यदि रोनेन सेन ने ऐसा कहा है तो वो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे।
चुनाव होंगे या नहीं ..भाजपा बेचैन है और उस तर्ज पर सोचने वाले मीडियाकर्मी भी अगले चार महीने में चुनाव होता देख रहे हैं। लेकिन मुद्दे की गंभीरता क्या चुनावों तक सीमित है। इस मामले में अवसरवादी वामपंथ और दक्षिणपंथ एक मोर्चे पर नजर आते हैं।
ऐसे में परमाणु समझौते के हिडेन एक्ट के साथ राजनीतिक ध्रुवीकरण पर ध्यान देना जरूरी है।
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