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माइम शैली को दुनियाभर में लोकप्रिय बनानेवाले फ्रांस के कलाकार मार्सेल मार्सो नहीं रहे। 22 सितंबर को 84 साल के मार्सेल का निधन हो गया। मार्सेल ने पोस्ट-वॉर ऑडिएंस को अपने अभिनय के जरिए जिंदगी के तमाम रंग दिखाए और मौन की भाषा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। किसी आलोचक ने मार्सेल के बारे में कहा था-
वो दो मिनट में इतना असर पैदा कर देते हैं जितना कोई उपन्यासकार कई संस्करणों में नहीं कर सकता।
स्ट्रॉबर्ग के एक यहूदी कसाई परिवार में पैदा हुए मार्सेल का असली नाम था मार्सेल मैंगेल लेकिन 1940 में पूर्वी फ्रांस में जब नाजियों की घुसपैठ हुई तो वो अपने परिवार के साथ स्ट्रॉबर्ग छोड़कर साउथवेस्ट भाग गए। यहूदी मूल छुपाने के लिए उन्होने अपने नाम में मार्सो जोड़ लिया। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान मार्च 1944 में मार्सेल के पिता को गेस्टापो की ओर से गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद मार्सेल ने अपने पिता को कभी नहीं देखा। चार्ली चैप्लिन की नकल करते हुए वो अभिनय की दुनिया में आए और फिर चार्ल्स डलिन का ड्रामा स्कूल ज्वाइन किया।
1949 में मार्सेल ने Compagnie de Mime Marcel Marceau शुरू किया और बीस साल बाद उन्होने पेरिस में International School of Mime की नींव रखी। यहां वो छात्रों को माइम का प्रशिक्षण देते थे। मार्सेल ने कई फिल्मों में यादगार किरदार निभाए। Barbarella (1968) में वो पागल प्रोफेसर बने, Shanks (1974) में कठपुतलीवाला बने और फिल्म First Class (1970) में तो उन्होने सत्रह रोल निभाए। बीबीसी के लिए मार्सेल ने क्रिसमस कैरोल का माइम वर्जन तैयार किया। उन्होने तीन बार शादियां कीं और अपने पीछे वो दो बेटियों और दो बेटों को छोड़ गए हैं।
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