`नया ज्ञानोदय´ के संपादक रवीन्द्र कालिया अगर चाहते तो इस वक्तव्य को अपने संपादकीय अधिकार का प्रयोग कर छपने से रोक सकते थे, लेकिन उन्होंने तो इसे पत्रिका के प्रमोशन और चर्चा के लिए उपयोगी समझा। आज के बाजारवादी, उपभोक्तावादी दौर में साहित्य के हलकों में भी सनसनी की तलाश में कई संपादक, लेखक बेचैन हैं। इस सनसनी-खोजी साहित्यिक पत्राकारिता का मुख्य निशाना स्त्री लेखिकाएं हैं और व्यापक स्तर पर पूरा स्त्री अस्तित्व। रवीन्द्र कालिया को भी इसके लिए माफी मांगनी चाहिए।
जिन्हें स्त्री लेखन के व्यापक सरोकारों और स्त्री मुक्ति की चिन्ता है वे इस भाषा में बात नहीं किया करते। साठोत्तरी पीढ़ी के कुछ कहानीकारों ने जिस स्त्री विरोधी अराजक भाषा ईजाद की, उस भाषा में न कोई मूल्यांकन सम्भव है और न विमर्श। जसम हिन्दी की उन तमाम लेखिकाओं व प्रबुद्धजनों के साथ है जिन्होंने इस बयान पर अपना रोष व्यक्त किया है।
प्रणय कृष्ण
महासचिव, जसम
केन्द्रीय कार्यालय : टी-10, पंचपुष्प अपार्टमेंट, अशोक नगर, इलाहाबाद मोबाइल-09415637908
नया ज्ञानोदय में प्रकाशित विभूति नारायण राय की विवादित टिप्पणी और साक्षात्कार का अंश

No comments:
Post a Comment