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Thursday, September 25, 2008

आपराधिक अर्थशास्त्र की शिनाख्त


मौजूदा आर्थिक संकट को समझने के लिए बस एक ही उदाहरण काफी है वह है हर्षद और केतन पारीख जैसे लोगों की करतूत पर नजर डालना। जिस तरह केतन पारीख और हर्षद मेहता ने बैंकों के पैसे का इस्तेमाल किया उसी तरह बड़े रूप में जो लीमन और बाकी इन्वेस्टमेंट बैंकर्स ने किया। हमारे देश में तो यह व्यक्तिगत और सीमित दायरे वाला प्रयोग था जो काफी हद तक सफल रहा है। बस थोड़ी बहुत अड़चने थी वो रेगुलेटरी यानी नियामकों की ओर से आ रही थीं। जिसे अब नई अर्थनीति के तहत हटा दिया गया है। अब आपके पीएफ वाले पैसे रिलायंस या कोई दूसरी कंपनी मैनेज करेगी। ज्यादा मुनाफा मिलेगा। क्योंकि अब हर्षद का संस्थानीकरण हो चुका है। लेकिन जिस मॉडल को हम अपने कानून के साथ आजमा रहे थे। पूंजी को पूर्णतया कनवर्टेबल बनाने जा रहे थे तभी यह खतरे में कैसे पड़ गया। आका के देश की हालत खराब होने लगी है। सभी डुबती कंपनियों को आका खरीद रहे हैं कहां हम बेचन आयोग बनाकर संभावना तलाश रहे थ। हमारे चापलूस पत्रकार संसद में बहुमत के बाद न जाने कौन-कौन से आर्थिक सुधार की गुंजाइश देख रहे थे। लेकिन अब तो आका ही अपने देशवाशियों से 700 अरब डॉलर की भीख मांग रहे हैं और साथ में चेतावनी भी दे रहे हैं।
हम इस लोभी अर्थव्यवस्था के तमाम पहलुओं तक आपको ले जाएंगे जो इसे संकट तक ले गईं। यह कोई चौंकाने वाली घटना नहीं है बल्कि यह हर सदी में इसे ले जाती है। लेकिन इससे सबक लेना बहुत जरूरी है क्योंकि जब-जब यह संकट में फंसदी है तो उससे उबरने के क्रम में यह भयानक मानवीय अपराध को जन्म देती है। तेल और हथियार हासिल करने की कोशिश तेज होगी। क्रुरता भरे युद्ध के बहुत मानवीय कारण होंगे। लेकिन हम सबसे पहले इस आपराधिक अर्थव्यवस्था के तर्कों को सजगता के साथ समझना होगा।

वित्तीय बाजार में पूंजी संचय या कैपिटल एकुमलेशन की तय परणति ने उन तर्कों को बिखेर कर रख दिया, जिसमें पूंजी को आवारा बनाने में ही भलाई बताई जाती थी। लेकिन हैरत की बात यह है कि इस संकट का दोषारोपण महज कुछ सीईओ और उपरी अधिकारियों की गलती के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन अर्थशास्त्री फ्रिडमैन और अमेरिकी राष्ट्रपति उम्मीदवार मैकनेन अब मानने लगे हैं कि यह लालच और भ्रष्टाचार की परणति हैं। अर्थशास्त्र की संतुलनवादी विचारधारा के समर्थक मुंह छुपाते घुम रहे हैं।

लेकिन हमें यह सब समझने के लिए इनके रेगुलेटरी यानी नियामकों में सुधारों की प्रक्रिया पर गौर करना जरूरी है। 1970 स्टॉक ट्रेडिंग से ई रुकावटें कानूनी रूप से हटाई गई। जिसमें इन्वेस्टमेंट बैंकर्स और बैंक की भूमिका को अलग रूप में देखता था। 1990 में Glass-Steagall जैसे कानून को भी पिछली सीट पर बिठा दिया दिया। इस रियायत के साथ ही बैंक और इन्वेस्टमेंट बैंकर्स के बीच का फर्क पूरी तरह दूर हो गया। । बैंकर्स और निवेशक एक बन गए। Glass-Steagall के खात्मे के बाद इन्वेस्टमेंट बैंकर्स ने न केवल ट्रेडिंग में हांथ पांव फैलाना शुरू किया बल्कि वे कॉमर्शियल बैंक की उस पूंजी को भी बाजार में ले जाने लगे जो लोगों ने मेहनत से जमा की थी। जाहिर यह काम कॉमर्शियल बैंक की मिलीभगत से होता था और सरकार इसके लिए कानूनी सहुलियते प्रदान कर रही थी। धीरे-धीरे AIG जैसी बीमा कंपनियां भी इस कारोबारी गठजोड़ में शामिल हो गईं। मुनाफा कमाने की होड़ में वे मनी मार्केट तक कसे लिवरेज फंडिंग उगाहने में एक-दूसरे से होड़ लेने लगे। इसी लिवरेज में वे सिक्यूर्टाइजेशन के बिजनेस में बूरी तरह घुस गए। (जारी...)

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