Monday, September 8, 2008
अब दारोमदार जनरल इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों पर...
एनएसजी का भारत के बारे में दिए बयान को पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें
परमाणु आपूर्ति करने वाले 45 देशों ने भारत को अमेरिका के साथ परमाणु व्यापार करने की छूट दे दी है। पीठ थपथपाई जा रही है। सत्ता ने तय कर लिया है कि इतना शोर मचाओं कि पता ही न चले कि आखिर एनएसजी सदस्य क्यों मान गए। सहयोगी अमेरिका ने ड्राफ्ट में क्या बदलाव किया इस बारे में सवाल न उठे। इस बात की संभावना तभी बन गई थी जब House Committee on Foreign Affairs (HCFA ) का जनवरी में लिखा हुआ 40 सवालों वाला चिट्ठा सामने आ गया। इस चिट्ठे को शुक्रवार शाम को प्रणव मुखर्जी ने अपने बयान का रूप दे दिया। फिर तो तय हो गया कि अब इस अदा पर तो एनएसजी को मानना ही होगा। मुखर्जी का बयान मीडिया में इस तरह परोसा जा रहा था मानो उन्होने परमाणु परीक्षण न करने का मॉरटोरियम देकर बहुत बौद्धिकता की बात कर दी हो। लेकिन हैरत की बात तब है जब इस छूट के बाद भी बुदबुदाते हुए जहां तहां सरकारी बौद्धिक जन न्यूक्लियर टेस्ट करने की बात कर रहे हैं। क्या नारायणन और क्या कलाम। लेकिन इस चौकड़ी को निर्देश है कि वह घरेलू विक्षोभ को हल्का बनाने का काम करती रहे।
यह बात सिरे से समझ लेनी चाहिए कि भारत 5 सितंबर 2008 को पेश की गई शर्तों के आधार पर परमाणु व्यापार करेगा। यह शर्त अमेरिका ने 4 से 6 सितंबर को पेश हुई बैठक में पेश किया गया। नई शर्त इसलिए बनानी बड़ी क्योंकि पूर्व की शर्ते एनएसजी की गाइडलाइन के मुताबिक नहीं थी।
एनएसजी ने भारत के बारे में 6 सितंबर को एक बयान जारी किया है। यह बयान आस्ट्रिया,चीन, जर्मनी,आयरलैंड, जापान,नीदरलैंड,न्यूजीलैंड,नार्वे,स्वीट्जरलैंड जैसे देशों के साथ आया है। इसमें साफतौर पर कहा गया है कि
-एनएसजी समूह के देशों को भारत के साथ पूरी तरह से परमाणु व्यापार में नहीं आना चाहिए।
-एनएसजी समूह के देशों को भारत के परमाणु परीक्षण के बाद परमाणु व्यापार से सौदों को खत्म कर देंगे।
-भारत 2005 के वक्त परमाणु अप्रसार के प्रति प्रतिबद्धता पर कायम रहना होगा। इसके अलावा एनएसजी द्विपक्षीय परमाणु व्यापार की सालान समीक्षा करेगा।
हालांकि अब अगली परीक्षा आज होगी। भाषाई जादुगरी को लेकर अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों को रिझाने की जिम्मेदारी जार्जबुश और उनके सहयोगियों पर होगी। 8 सितंबर को हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की कार्यवाही शुरू होने जा रही है। बुश लॉबी को सबसे ज्यादा चिंता इस डील के मुखर विरोधी HCFA के चेयरमैन हावर्ड बेर्मन और उनके सहयोगियों से है। 26 सितंबर को कांग्रेस अगले चुनाव तक के लिए स्थगित हो जाएगी। इसलिए एक धड़ा मान रहा है कि अमेरिकी कांग्रेस में बिल की मंजूरी के लिए कम समय है।अगर यह बिल इस वक्त नहीं पास हुआ तो इसे नई कांग्रेस तक के लिए इंतजार करना होगा।
इस बिल को पास कराने के लिए सबसे ज्यादा जोर जनरल इलेक्ट्रिक कर रही है। क्योंकि इस कंपनी को न्यूक्लियर उपकरणों के लिए भारत से बड़ा ऑर्डर मिलने की संभावना है। लेकिन बाकी गिद्धों के लिए तो अब एनएसजी ने रास्ता खोल ही दिया है। इसलिए फ्रांस की कंपनी अरेवा, रुसी कंपनी रोसातोम और जापान की तोसिबा अपने ऑर्डर बुक का हिसाब किताब लगाने में जुट गई हैं।
लेकिन अगर हमें कोई कारोबारी लाभ या उस लॉबी के हिस्सेदार नहीं हैं तो हमें आम जनता की तरह उन शर्तों को सामने लाने की कोशिश करनी ही होगी जिसे मानने के बाद एनएसजी ने भारत को रियायत बख्शी है।
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