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Friday, January 25, 2008

ब्लैक लिस्ट होने का डर...


शिक्षा जगत में मौजूद धांधली के ऊपर उंगली उठाने की कोशिश बहुत कम लोग करते हैं। हालांकि शिक्षा जगत से जुड़े माफिया किसी भी मायने में बाकी सेक्टर से अलग नहीं है। जब बात हिंदी की हो तब तो कहना क्या। बात केवल नियुक्तियों तक सीमित नहीं है। इस भाषा के खिलाफ एक सांस्कृतिक पिछड़ेपन की अवधारणा को भी जोड़ने का सचेत प्रयास होता है। कई बार लगता है कि इसे संस्थान केवल मजबूरी में पढ़ाते हैं। नियुक्तियों की यह प्रक्रिया यही साबित करती है कि इस भाषा को समर्थ भाषा की पटरी से उतार दिया जाय। इसके दांवपेंच के बीच बेहतर जीवन जीने की शर्त को समझाते हुए एक अनाम पत्र मिला है। जिसने सुधीर सुमन के अनुभवों की तथ्यात्मक पुष्टि की है। साथ ही उन्हे इस समस्या से निपटने के लिए सलाह भी दी गई है।
सुधीर भाई, मेरे परिवार में साहित्य को एक विषय के रूप में तो कभी किसी ने नही पढा लेकिन हिन्दी साहित्य में पाठक नाम की यदि कोई जाति है तो आप उसमें मेरा नाम खानदानी पाठक के रूप में जोड़ सकते हैं. जहाँ तक मुझे हिन्दी साहित्य की पठन-पाठन परम्परा का ज्ञान है, आप को पता होगा की हजारी प्रसाद जी और नामवर जी जैसे लोगों को अपनी योग्यता से नौकरी नही मिल पाई और वो भी अपनी सिफारिश के लिए सुमन जी जैसे कम talented लोगों का मुंह देखने को अभिशप्त रहे. डॉ नागेंद्र ने अनगिनत लोगों की नियुक्तियां करवाईं.मेरी जानकारी में हिन्दी साहित्य में कोई नही है जिसने बिना सिफारिश नौकरी पाई हो.ये शाप हर प्रतिभा को ढोना है चाहे अप का कद जो भी हो,उससे कोई फर्क नही पड़ता.
मुक्तिबोध आजीवन बीड़ी पीते रहे और मास्टरी करते रहे, उनपर रिसर्च कराने वाले वीसी बन गए. किसी खुद्दार और प्रतिभाशाली साहित्यकार ने नौकरी को तवज्जो नही दी. राजेंद्र यादव,उदय प्रकाश,रवींद्र कालिया आदि की लम्बी सूची हमारे सामने है, पछले साल बीएचयू में पंकज चतुर्वेदी थे, इस साल झारखंड में आप हैं अगले साल कहीं कोई और होगा. जिन संजीव पर आप ने पीएचडी की है वो ख़ुद नौकरियों की तलाश में अनिश्चित जीवन जी रहे हैं. हिन्दी साहित्य की मेरी जानकारी ये कहती है की आप की युए पोस्ट आप को higher education में ब्लैक लिस्ट करवा देगी शर्तिया फ़िर भी अगर कोई संभावना शेष है तो मेरे मित्र चुपचाप अपनी बारी का इंतजार करो जब तुम्हारा कोई श्रधेय बोर्ड में बैठेगा और तुम्हें उपकृत करेगा दूसरा रास्ता ये है की कोर्ट में कफ़न बाँध कर उतर जाओ... तुम किस समाज के सुधारने की आस लगाए हो,जो हजारीजी, नामवर जी और एक चोरी की थीसिस से डिग्री कराने वाले में फर्क नही कर सकता...........................

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