9/11 की घटना महज एक आतंकवादी घटना नहीं है। यह राज्य के बदलते चरित्र की भी निशानी है। चुंकि इस तरह के आतंकवाद का किसी किस्म के मुक्ति आंदोलन से कोई रिश्ता नहीं होता और नही यह व्यवस्था के बदलाव की लड़ाई है। लिहाजा नवउदारवादी राज्य परोक्ष रुप से ऐसे आतंकवाद के पोषक भी होते हैं। दिखने में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध लगता है। पता ही नहीं चलेगा कि किस मोड़ पर राज्य और आतंकवाद एक हो गए जनता अकेले छूटती चली जाती है। मुक्तकामी विचार हास्यास्पद लगने लगते हैं। कई बार तो सत्ता दखल के आंदोलन भी आतंकवादी ठहरा दिए जाते हैं। अब इतिहास की करवट लगने लगी है। राज्य के इस घिनौने चरित्र को अब देरिदा वैचारिक शुन्यता करार रहे हैं । 9/11 के बाद नई करवट लिए दिखते हैं। आतंकवाद की दार्शनिक समझ को आगे बढ़ाने के लिए हम अपने समय के प्रसिद्ध दार्शनिक देरिदा के साक्षात्कार का अंश दे रहे हैं।
आतंकवाद और दर्शन
- देरिदा
बुश युद्ध की बात करते हैं पर वह शत्रु की पहचान करने में असमर्थ हैं। बिना जाने समझे युद्ध की घोषणाएं की गई है। बार-बार कहा जाता है कि अफगानिस्तान की जनता और उसकी सेनाएं अमेरिका की शत्रु नहीं है। मानलिया की बिन लादेन वही हैं लेकिन सबको पता है कि वह अफगान नहीं है और यह भी कि उसके अपने देश ने उसे अस्वीकार कर दिया है। यह भी की उसकी अधिकांश ट्रेनिंग अमेरिका में हुई है। वह अकेला नहीं है जो राज्य परोक्ष रूप से उसकी मदद करते हैं वे अफगानिस्तान राज्य की तरह नहीं करते। जो राज्य आतंकवादी नेटवर्क को शरण देते हैं उनकी पहचान मुश्किल है। अमेरिका, यूरोप, लंदन, बर्लिन ये भी सारी दुनिया के आतंकवादियों की ट्रेनिंग और निर्माण के पोषण स्थल हैं। इसलिए कोई भूगोल कोई क्षेत्रीय सिमांकन इस संदर्भ में प्रासंगिक नही रहा है।
अब तो आतंकवादी हमले के लिए जहाजों और बमों आदि की भी जरूरत नही है रणनीतिक रूप से किसी कंप्यूटर सिस्टम में वायरस या कोई अन्य विध्वंसात्मक तत्व घुसाकर पूरे देश या महाद्वीप के आर्थिक, सैनिक और राजनीतिक संसाधनों को पंगु किया जा सकता है। धरती और आतंक के बीच के संबंधो का रुपांतरण हो गया है। इस बात की जानकारी लेना आवश्यक है ऐसा ज्ञान अर्थात टेक्नो साइंस के कारण संभव हुआ है। विध्वंस के संभावनाओं के मुकाबले 11 सितंबर का काम पिछड़ा माना जाएगा। कल चुपचाप, जल्दबाजी और बिना खुन बहाए बहुत बड़े विध्वंस किए जा सकते हैं। जिसमें किसी महान देश का जीवन खतरे में पड़ सकता है। हो सकता है तब कहा जाय कि 9/11 तो विगत युद्ध के अच्छे दिनों का प्रमाण है। उस समय चीजें बड़ी दिखाई देती थीं पर अब तो उससे ज्यादा बूरी हालत है। हर तरह की नैनोटेक्नोलॉजी पहले से ज्यादा शक्तिशाली, अदृश्य अनियंत्रित है और कहीं भी घुस सकती है। वह माइक्रोवेब और बैक्टरिया की माइक्रोलॉजिकल प्रतिद्वंदी है। हमारे अचेतन को इसका पता है औऱ यही वह अधिक भयावह है।
सुनिए अमेरिका...अमेरिका...
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