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Monday, July 18, 2011

अनिल सिन्हा की याद में


अनिल सिन्हा स्मृति
अनिल सिन्हा मेमोरियल फाउंडेशन
आपको अपने पहले कार्यक्रम के लिए सादर आमंत्रित करता है
कार्यक्रम
ऽ वीरेन डंगवाल द्वारा अनिल सिन्हा के ताजा कहानी संग्रह ‘एक पीली दोपहर का किस्सा’ का लोकार्पण
ऽ आलोक धन्वा, मंगलेश डबराल और आनंद स्वरूप वर्मा द्वारा अनिल सिन्हा की याद
ऽ इरफान द्वारा अनिल सिन्हा की एक कहानी का पाठ
ऽ चित्त प्रसाद की कला और इतिहास दृष्टि पर अशोक भौमिक की खास पेशकष
कार्यक्रम की अध्यक्षता मैनेजर पाण्डेय करेंगे
इस शाम के आयोजन में शरीक होकर फाउंडेशन को मजबूत बनाएँ
समय: शाम 5 बजे शनिवार 23 जुलाई , 2011
जगह: कौस्तुभ सभागार, ललित कला अकादमी, रवीन्द्र भवन, कोपरनिकस मार्ग, मंडी हाउस , नई दिल्ली - 110001
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अनिल सिन्हा
(11 जनवरी 1942 - 25 फरवरी 2011)
अनिल सिन्हा, एक दोस्ताना शख्सियत, जिसे हम सब अच्छी तरह जानते थे फिर भी जिस के कुछ पहलू हम से छूट जाया करते थे। जनवादी पत्रकार, प्रतिबद्ध साहित्यिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक कार्यकर्ता। दृष्टिनिर्माता कला-आलोचक। संवेदनशील कथाकार । हर एक मोर्चे पर उत्पीडि़त अवाम की तरफदारी में तैनात। जमीन की जंग में, दलित-दमित वर्गों, समुदायों और राष्ट्रीयताओं के संघर्ष में, उर्दू-हिंदी इलाके के क्रांतिकारी वाम- आन्दोलन के समर्पित सिपाही के बतौर. मंच की तीखी रौशनी से बच कर, जमीनी कार्यकर्ता की अपनी चुनी हुयी भूमिका से नायकत्व की अवधारणा को पुनर्परिभाषित करते हुए।
अनिल सिन्हा ने पत्रकारिता की शुरुआत दिनमान से की फिर वे अमृत प्रभात, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा और दैनिक जागरण से भी जुड़े। वे हिंदी अखबारों की बदलती कार्यशैली से तालमेल न बिठा सके और अपने सरोकारों के लिए उन्होंने फ्रीलांस पत्रकारिता, शोध कार्य और स्वतंत्र लेखन का रास्ता चुना। अनिल सिन्हा जन संस्कृति मंच के संस्थापक सदस्य थे और आजीवन वाम राजनीति में संस्कृति कर्म की सही भूमिका तलाशते रहे।
अनिल सिन्हा मेमोरियल फाउंडेशन
अनिल सिन्हा मेमोरियल फाउंडेशन का मकसद है अनिल सिन्हा की विरासत को आगे बढ़ाना। उन जीवन-मूल्यों और सिद्धांतों के लिए काम करना, जिन के लिए उन्होंने अपनी जिन्दगी की लड़ाई लड़ी। खास तौर पर-
- लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और अन्य समानधर्माओं के लिए संवाद और सहयोग की एक ऐसी जगह निकालने की कोशिश, जहां वाम-जनवादी विचारों को पनपने का अवसर मिले।
- संभावनाशील लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं की दुखती हुई पीठ थपथपाने की कोशिश, एक सालाना सम्मान की शक्ल में।
- अनिल सिन्हा के जहां-तहां बिखरे हुए कामकाज को इकट्ठा करना, संग्रहित करना, प्रकाशित करना और निकट भविष्य में एक लाइब्रेरी की स्थापना करना।

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