प्रिय साथियो,
अबतक आप सबको साथी अनिल सिन्हा के असमय गुज़र जाने का अत्यंत दुखद समाचार मिल चुका होगा. अनिल जी जैसा सादा और उंचा इंसान , उनके जैसा संघर्ष से तपा निर्मल व्यक्तित्व, क्रांतिकारी वाम राजनीति और संस्कृति -कर्म का अथक योदधा अपने पीछे कितना बड़ा सूनापन छोड़ गया है, अभी इसका अहसास भी पूरी तरह नहीं हो पा रहा. यह भारी दुःख जितना आशा जी, शाश्वत, ऋतु,निधि,अनुराग, अरशद और अन्य परिजन तथा मित्रों का है उतना ही जन संस्कृति के सभी सह-कर्मियों का भी. हमने एक ऐसा साथी खोया है जिससे नयी पीढी को बहुत कुछ सीखना था, कृतित्व से भी और व्यक्तित्व से भी. हमारे सांस्कृतिक आन्दोलन के हर पड़ाव के वे साक्षी ही नहीं, निर्माताओं में थे. कलाओं के अंतर्संबंध पर जनवादी-प्रगतिशील नज़रिए से गहन विचार और समझ विकसित करनेवाले विरले समीक्षक, मूल्यनिष्ठ पत्रकारिता के मानक व्यक्तित्व के रूप में वे प्रगतिशील संस्कृति कर्म के बाहर के भी दायरे में अत्यंत समादृत रहे. उनके रचनाकार पर तो अलग से ही विचार की ज़रुरत है. जन संस्कृति मंच अपने आन्दोलन के इस प्रकाश स्तम्भ की विरासत को आगे बढाने का संकल्प लेते हुए कामरेड अनिल सिन्हा को श्रद्धांजलि व्यक्त करता है. हम साथी कौशल किशोर द्वारा अनिल जी के जीवन और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालने वाली संक्षिप्त टिप्पणी नीचे दे रहे हैं. यह टिप्पणी और अनिल जी की तस्वीर अटैचमेंट के रूप में भी आपको संप्रेषित कर रहा हूँ.
प्रणय कृष्ण,
महासचिव,
जन संस्कृति मंच
जाने - माने लेखक व पत्रकार अनिल सिन्हा नहीं रहे
लखनऊ, 25 फरवरी। जाने माने लेखक व पत्रकार अनिल सिन्हा नहीं रहे। आज 25 फरवरी को दिन के 12 बजे पटना के मगध अस्पताल में उनका निधन हुआ। 22 फरवरी को जब वे दिल्ली से पटना आ रहे थे, ट्रेन में ही उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ। उन्हें पटना के मगध अस्पताल में अचेतावस्था में भर्ती कराया गया। तीन दिनों तक जीवन और मौत से जूझते हुए अखिरकार आज उन्होंने अन्तिम सांस ली। उनका अन्तिम संस्कार पटना में ही होगा। उनके निधन की खबर से पटना, लखनऊ, दिल्ली, इलाहाबाद आदि सहित जमाम जगहों में लेखको, संस्कृतिकर्मियों के बीच दुख की लहर फैल गई। जन संस्कृति मंच ने उनके निधन पर गहरा दुख प्रकट किया है। उनके निधन को जन सांस्कृतिक आंदोलन के लिए एक बड़ी क्षति बताया है।
ज्ञात हो कि अनिल सिन्हा एक जुझारू व प्रतिबद्ध लेखक व पत्रकार रहे हैं। उनका जन्म 11 जनवरी 1942 को जहानाबाद, गया, बिहार में हुआ। उन्होंने पटना विशविद्दालय से 1962 में एम. ए. हिन्दी में उतीर्ण किया। विश्वविद्दालय की राजनीति और चाटुकारिता के विरोध में उन्होंने अपना पी एच डी बीच में ही छोड़ दिया। उन्होंने कई तरह के काम किये। प्रूफ रीडिंग, प्राध्यापिकी, विभिन्न सामाजिक विषयों पर शोध जैसे कार्य किये। 70 के दशक में उन्होंने पटना से ‘विनिमय’ साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया जो उस दौर की अत्यन्त चर्चित पत्रिका थी। आर्यवर्त, आज, ज्योत्स्ना, जन, दिनमान से वे जुड़े रहे। 1980 में जब लखनऊ से अमृत प्रभात निकलना शुरू हुआ उन्होंने इस अखबार में काम किया। अमृत प्रभात लखनऊ में बन्द होने के बाद में वे नवभारत टाइम्स में आ गये। दैनिक जागरण, रीवाँ के भी वे स्थानीय संपादक रहे। लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से उन्होंने वह अखबार छोड़ दिया।
अनिल सिन्हा बेहतर, मानवोचित दुनिया की उम्मीद के लिए निरन्तर संघर्ष में अटूट विश्वास रखने वाले रचनाकार रहे हैं। वे मानते रहे हैं कि एक रचनाकार का काम हमेशा एक बेहतर समाज का निर्माण करना है, उसके लिए संघर्ष करना है। उनका लेखन इस ध्येय को समर्पित है। वे जन संस्कृति मंच के संस्थापकों में थे। वे उसकी राष्ट्रीय परिषद के सदस्य थे। वे जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश के पहले सचिव थे। वे क्रान्तिकारी वामपंथ की धारा तथा भाकपा (माले) से भी जुड़े थे। इंडियन पीपुल्स फ्रंट जेसे क्रान्तिकारी संगठन के गठन में भी उनकी भूमिका थी। इस राजनीति जुड़ाव ने उनकी वैचारिकी का निर्माण किया था।
कहानी, समीक्षा, अलोचना, कला समीक्षा, भेंट वार्ता, संस्मरण आदि कई क्षेत्रों में उन्होंने काम किया। ‘मठ’ नम से उनका कहानी संग्रह पिछले दिनों 2005 में भावना प्रकाशन से आया। पत्रकारिता पर उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘हिन्दी पत्रकारिता: इतिहास, स्वरूप एवं संभावनाएँ’ प्रकाशित हुई। पिछले दिनों उनके द्वारा अनुदित पुस्तक ‘सामा्राज्यवाद का विरोध और जतियों का उन्मूलन’ छपकर आया थ। उनकी सैकड़ों रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में छपती रही है। उनका रचना संसार बहुत बड़ा है , उससे भी बड़ी है उनको चाहने वालों की दुनिया। मृत्यु के अन्तिम दिनों तक वे अत्यन्त सक्रिय थे तथा 27 फरवरी को लखनऊ में आयोजित शमशेर, नागार्जुन व केदार जन्तशती आयोजन के वे मुख्य कर्ताधर्ता थे।
नके निधन पर शोक प्रकट करने वालों में मैनेजर पाण्डेय, मंगलेश डबराल, वीरेन डंगवाल, आलोक धन्वा, प्रणय कृष्ण, रामजी राय, अशोक भौमिक, अजय सिंह, सुभाष चन्द्र कुशवाहा, राजेन्द्र कुमार, भगवान स्वरूप् कटियार, राजेश कुमार, कौशल किशोर, गिरीष चन्द्र श्रीवास्तव, चन्द्रेश्वर, वीरेन्द्र यादव, दयाशंक राय, वंदना मिश्र, राणा प्रताप, समकालीन लोकयुद्ध के संपादक बृजबिहारी पाण्डेय आदि रचनाकार प्रमुख हैं। अपनी संवेदना प्रकट करते हुए जारी वक्तव्य में रचनाकारों ने कहा कि अनिल सिन्हा आत्मप्रचार से दूर ऐसे रचनाकार रहे हैं जो संघर्ष में यकीन करते थे। इनकी आलोचना में सृजनात्मकता और शालीनता दिखती है। ऐसे रचनाकार आज विरले मिलेंगे जिनमे इतनी वैचारिक प्रतिबद्धता और सृजनात्मकता हो। इनके निधन से लेखन और विचार की दुनिया ने एक अपना सच्चा व ईमानदार साथी खो दिया है।
कौशल किशोर
संयोजक
जन संस्कृति मंच, लखनऊ
4 comments:
अनिल जी का यूँ चले जाना, (पक्षाघात में..जिसे काबू किया जा सकता है अगर उपयुक्त उपचार मिले) दुखद खबर है, उनके परिजनों और साथियों को सब्र आ जाये..यही प्रार्थना है...खबर के साथ यदि एक फ़ोटो लगा दिया जाता तब शायद मैं पहचान भी जाता...सादर
everybody has to go in same /or other manner to the ultimate destination
but some person always remember as mr anil
great
abhi teen char din pahle hi to mai apne ek dost se unki charcha kar raha tha.unek jaise log aaj kam hi hain. kuchh dhakka to laga hai, lekin anil bhai ki ladai jari rahegi.- Devendra Pratap
बहुत ही खुबसूरत,आप जैसे प्रगति-शील संगठनो की वजह से ही,
भगत सिंह आज भी हम लोगों के अन्दर जिन्दा है?
इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद....................|
रंजय कुमार
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