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७ नवम्बर,२००९. नैनीताल.
जन संस्कृति मंच और युगमंच द्वारा आयोजित नैनीताल फ़िल्म समारोह शुरु होने से पहले मूर्धन्य पत्रकार प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि दी गई और उनकी याद में एक मिनट का मौन रखा गया. इस अवसर पर जसम के महासचिव प्रणय कृष्ण, जन-कवि व गायक गिर्दा,कवि वीरेन डंगवाल,त्रिनेत्र जोशी, पंकज चतुर्वेदी,आधारशिला पत्रिका के संपादक दिवाकर भट्ट, दैनिक जागरण के उप-संपादक अशोक चौधरी,चित्रकार अशोक भौमिक,फ़िल्मकार अजय भारद्वाज, संजय जोशी, नाट्य निर्देशक ज़हूर आलम सहित तमाम संस्कृतिकर्मीऔए पत्रकार मौजूद थे. प्रणय कृष्ण ने जसम द्वारा जारी शोक-वक्तव्य में कहा कि "श्री प्रभाष जोशी असमय ही हमारे बीच से गए. वे हिंदी के अपने जातीय व ठेठ बुद्धिजीवी थे, मूल्यनिष्ठ पत्रकार और लोकतांत्रिक व नागरिक मूल्यों की हर कीमत पर हिफ़ाज़त करने के लिए पत्रकारिता और समाज में खतरे उठाकर भी हस्तक्षेप करने वाले नागरिक थे. उन्होंने आज के मीडिया के बाज़ारू और पतनशील पक्षों पर जम कर जीवन के अंतिम दिनों तक अभियान चलाए. प्रभाष जी बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से संघ परिवार के खिलाफ़ उस समय डट कर खड़े हुए जब मीडिया का एक अच्छा-खासा हिस्सा संघ और भाजपा के अभियान में शामिल था. प्रभाष जोशी के स्वर की विशेषता यह थी कि उसमें वह ठेठपन था जो कस्बे और छोटे शहर के सामान्य हिंदू मध्यवर्ग तक संप्रेषित होती थी. प्रभाष जोशी का स्वर संघ के स्वदेशी, भारतीय और हिंदू दावों की पोल खोलनेवाला एक 'इनसाइडर' हिंदू स्वर था, इसलिए इस तबके में उसकी विश्वसनीयता अन्य आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष स्वरों की अपेक्षा अधिक थी. प्रभाष जी कभी-कभी अपने चाहनेवालों के बीच भी अपने कुछ विचारों को लेकर विवादित रहे, लेकिन इन विवादों से ज़्यादा टिकाऊ हुई उनकी ईमानदारी, सादगी और लोकतांत्रिक निष्ठा. उनकी जगह बहुत लम्बे समय तक भरी नहीं जा सकेगी."
प्रणय कृष्ण,महासचिव, जसम
2 comments:
पत्रकारिता के महान प्रहरी को मेरा नमन है.
communisto ke mahan virodhi ki itni taarif? kya ho gaya hai jasam ko! idealogical bankruptcy?
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