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Sunday, June 29, 2008

कौन हैं ये फ्यूचर ट्रेडर?


वित्तीय अर्थव्यवस्था के नुमाइंदे तब तक संकट नहीं मानते जब तक शेयर ब्रोकर छतो से छलांग न लगाना शुरू कर दें। अर्थशास्त्री ड्यूजनबरी जब बताते हैं कि हम इनकम बढ़ने पर जिस तेजी से उपभोग करना शुरू करते हैं उतनी तेजी से अगर इनकम घटती है तो उपभोग को पुराने स्तर पर नहीं ला पाते। यह कमजोरी ही वित्तीय अर्थशास्त्र की ताकत है। छुटभैये निवेशकों से लेकर हेज फंड मालिकों और सरकारों तक को वित्तीय संकट की बात अभी भी नहीं पच रही है। वे नहीं मानेत कि दुनिया के आर्थिक विकास में 1970 से ही लगातार दशकीय ग्रोथ कम होता गया है। हालांकि आंकड़े लगातर बयान कर रहे हैं कि 70 के दशक का ग्रोथ रेट 60 से कम है और 80 का 90 से कम है। यह सिलसिला थमा नहीं है और 2000 सबसे कम ग्रोथ रेट वाला रहा है। यह दौर रहा है जब रियल इकोनॉमी वित्तीय सट्टेबाजी वाली अर्थव्यवस्था में बदल रही थी। सट्टेबाजी नीति अपने को बचाने में हर कोने को झासा दे रही है। फ्यूचर ट्रेडिंग इसका सीधा सबूत है। महंगाई अन्न की वजह से है या फिर कच्चे तेल से यह सरकारें समय समय पर तय करती रही हैं लेकिन दोनों में फ्यूचर ट्रेडिंग के सटोरिए कैसे व्यवहार करते हैं यह जानना काफी दिलचस्प है। इसमें सबसे पहले हम कच्चे तेल की कीमतों में घुसे सटोरियों की पड़ताल करेंगे। हम उनके कारोबार के तौर तरीके जानेंगे और देखेंगे कि आखिर 13 साल की महंगाई का रिकॉर्ड की पूंछ किनके पैरों के तले दबी है।
तेल संकट या सबप्राइम नुकसान की भरपाई
यह सवाल शायद आपके सामने पहली बार आ रहा होगा कि आखिर सबप्राइम संकट में मार खाए बैंकर्स अब कच्चे तेल के फ्यूचर ट्रेडिंग से कितना मुनाफा बटोरना चाहते हैं। क्या यह मुनाफा सबप्राइम घाटे को पूरा कर पाएगा।
सबसे पहले हम मौजूदा तेल बाजार में फ्यूचर कारोबारियों की भूमिका पर नजर डालेंगे। कच्चे तेल की कीमत 138 डॉलर प्रति बैरल पर है तो उसका 60 परसेंट हिस्सा अनरेगुलेटेड फ्यूचुर्स स्पेकुलेशन का है। यानी उस हिस्से पर अधिकार फ्यूचर ट्रेडर्स का है। ट्रेडर्स यह हिस्सेदारी लंदन के आईसीई फ्यूचर्स और न्यूयार्क के नाइमेक्स के अलावा अनरेगुलेटेड इंटर बैंक या ओवर काउंटर ट्रेडिंग एजेंसिया खरीद रहे हैं। अमेरिकी मार्जिन रूल के तहत सरकारी फ्यूचर ट्रेडिंग कॉरपोरेशन सट्टेबाजों को नाईमेक्स पर कांट्रैक्ट के महज 6 परसेंट कीमत पर सौदा करने की इजाजत देता है। अगर आज कीमत 138 डॉलर प्रति बैरल है तो सट्टेबाज महज 9 डॉलर प्रति बैरल कीमत चुकाकर फ्यूचर्स ट्रेडिंग कर सकते हैं। बाकी 129 डॉलर वह उधारी के रूप में ही कारोबार करेगा। कीमतों में 17 गुना की कम जोखिम पर मिलने वाली रियायत कच्चे तेल के खुले बाजार में कीमतों को बढ़ाने की सबसे खास वजह है।


अब देखिए कि इस सट्टेबाजी के किरदार कौन लोग हैं। इसके सरताजों में शामिल हैं गोल्डमैन सैक्स, मार्गन स्टेनले, ब्रिटिश पेट्रोलियम, फ्रेंच बैंकिंग समूह Société Générale,बैंक ऑफ अमेरिका और स्विस बैंक मर्क्यूरिया। इनमें से ज्यादातर संस्थाएं प्रत्यछ या परोक्ष रूप से सबप्राइम में भारी घाटा उठा चुकी हैं।
लंदन स्थित इंटरनेशनल पेट्रोलियम एक्सचेंज का नियंत्रण ब्रिटिश पेट्रोलियम के हाथो में है। यह एनर्जी फ्यूचर एंड ऑप्शन कारोबार कारोबार का सबसे बड़ा एक्सचेंज है। जिसे आईपीई के नाम से लोग जानते हैं। थोड़ा इस कंपनी के भीतर चलते हैं। इस कंपनी के मुख्य शेयरधारक गोल्डमैन सैक्स और मार्गन स्टैनले है। आखिर फ्रेंच अखबार ले मोंडे की प्रतियां क्यों चंद मिनटों में साफ हो गई जिसमें उन संस्थाओं के नाम थे जो तेल की कीमतों के बारे में अफवाह फैलाने के लिए मुंह मांगी रकम दे रही थे। उन संस्थाओं में शामिल था फ्रांस का Société Générale, बैंक ऑफ अमेरिका, ड्यूश बैंक पूरी तरह शामिल थे। (देखें-Miguel Angel Blanco, La Clave, Madrid, June 2008)
जारी...

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