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तब आएगी क्रूरता
पहले ह्रदय में आएगी और चेहरे पर न दिखेगी
फिर घटित होगी धर्मग्रंथो की ब्याख्या में
फिर इतिहास में और
भविष्यवाणियों में
फिर वह जनता का आदर्श हो जाएगी
....वह संस्कृति की तरह आएगी,
उसका कोई विरोधी नहीं होगा
कोशिश सिर्फ यह होगी
किस तरह वह अधिक सभ्य
और अधिक ऐतिहासिक हो
...यही ज्यादा संभव है कि वह आए
और लंबे समय तक हमें पता ही न चले उसका आना
# कुमार अंबुज
1 comment:
भाई,
यह एक बहुचर्चित और प्रभावी कविता है जो आपने अधूरी लगा दी है। अधूरी भी नहीं बल्कि कुछ टुकड़े इधर उधर से। क्या आप इसे पूरा लगाना पसंद करेंगे। यह हमारे समय की शिनाख्त करती हुई कविता है।
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