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Thursday, February 11, 2010

वार- नो मोर....

ये गीत बॉब मार्ले का है और तकरीबन 40-50 साल पहले लिखा और गाया था।प्लेइंग फॉर चेंज ने दुनिया के अलग-अलग जगहों और वहां के बेहतरीन गायकों को साथ लेकर इस गीत को नए अंदाज में कंपोज किया है।



Until the philosophy which hold one race superior
And another
Inferior
Is finally
And permanently
Discredited
And abandoned -
Everywhere is war -
Me say war.

That until there no longer
First class and second class citizens of any nation
Until the colour of a man's skin
Is of no more significance than the colour of his eyes -
Me say war.

That until the basic human rights
Are equally guaranteed to all,
Without regard to race -
Dis a war.

That until that day
The dream of lasting peace,
World citizenship
Rule of international morality
Will remain in but a fleeting illusion to be pursued,
But never attained -
Now everywhere is war - war.
Find More lyrics at www.sweetslyrics.com

And until the ignoble and unhappy regimes
that hold our brothers in Angola,
In Mozambique,
South Africa
Sub-human bondage
Have been toppled,
Utterly destroyed -
Well, everywhere is war -
Me say war.

War in the east,
War in the west,
War up north,
War down south -
War - war -
Rumours of war.
And until that day,
The African continent
Will not know peace,
We Africans will fight - we find it necessary -
And we know we shall win
As we are confident
In the victory

Of good over evil -
Good over evil, yeah!
Good over evil -
Good over evil, yeah!
Good over evil -
Good over evil, yeah! [fadeout]

Wednesday, October 28, 2009

लोकतंत्र का खतरा या खतरे में लोकतंत्र !


न्यूज चैनल CNNIBN पर प्रसारित करण थापर के साथ अरुंधती राय का साक्षात्कार कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
ये साक्षात्कार महज सवाल और जवाब का सिलसिला भर नहीं है। इसमें साक्षात्कार देने और लेने वाले दोनों अपने 'अनकुल लोकतंत्र'के हिसाब से सवाल जवाब कर रहे हैं। एक 'लोक'को दरकिनार करने वाली नीतियों के जरिए लोकतंत्र चाहता है तो दूसरे मौजूदा लोकतंत्र के ढांचे पर ही आपत्ति है,उसका मानना है कि मौजूदा लोकतंत्र की बनावट ही ऐसी है कि इससे 'लोक' दूर होता जा रहा है।
साक्षात्कार पांच हिस्सों में है और खासतौर पर इन सवालों पर केंद्रित है कि-
-लोकतंत्र खतरे में है या फिर खतरनाक लोकतंत्र बेनकाब हो रहा है?
-क्या नक्सलवाद और राज्य के बीच संघर्ष धनी और गरीब लोगों की सेनाओं का संघर्ष है?
-अगर अभी तक शांतिपूर्ण आंदोलन की अनदेखी के बाद क्या हिंसक संघर्ष एकमात्र रास्ता होना चाहिए है?
-क्या नक्सलियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई जरूरी है?
--क्या सरकार को खनन कंपनियों के साथ हुए MoU को सार्वजनिक करना चाहिए?
-क्या राजनेता,उद्योगपतियों के लेफ्टिनेंट की भूमिका निभा रहे हैं?
पहला हिस्सा-

दूसरा हिस्सा

तीसरा हिस्सा

चौथा हिस्सा



पांचवां हिस्सा

साभार-आईबीएनलाइव

Friday, August 22, 2008

सुनता है गुरु ज्ञानी

कबीर के इस निर्गुण ज्यादातर लोग कुमार गंधर्व की आवाज में सुन चुके होंगे। लेकिन नई पीढ़ी के गायक राहुल देश पांडे की आवाज में सुनना भी एक नया अनुभव होगा।

Tuesday, March 18, 2008

Tibet-The Story Of A Tragedy

तिब्बत पर प्रसून के लेख ने तिब्बत के इतिहास को जिस नजरिए से देखा उसका कुछ लोगों ने समर्थन किया तो कुछ ने चीनी दूतावास का पर्चा बताया। अब हम आपको तिब्बत पर एक ऐसी फिल्म दिखाने जा रहे हैं जो तिब्बत के इतिहास पर बहुत सटीक नजरिया पेश करती है। थोड़ा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि सांस्कृतिक स्वायत्ता की मांग में आखिर सीआईए और ब्रिटिश राजाओं की भूमिका किस तरह की थी। तथ्य और तकनीक के लिहाज से यह अब तक की सबसे प्रमाणिक फिल्म मानी गई है। हो सकता है जिस तरह प्रसून के लेख को कुछ लोगों ने चीनी पर्चा बताया उसी तरह यह फिल्म धर्मशाला की प्रोपेगैंडा फिल्म लगे। पिछले लेख में जिस तरह के विचार आए उस पर बातचीत आगे की जाएगी, लेकिन फिलहाल देखते हैं
Tibet The Story Of A Tragedy


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Thursday, January 17, 2008

फिल्म को फिल्म की तरह देखें.. मतलब !

हमने सोचा कि फिल्म 300 पर कोई बहस आगे नहीं बढ़ेगी। लेकिन बहस धीरे-धीरे ही सही बहस आगे बढ़ी । हालांकि लिखने वालों ने नाम नही दिया। आप भी जानिए फिल्म पर दी जाने वाली प्रतिक्रियाओं के बारे में।
Anonymous said...
सदी की बेहतरीन और जिम्मेदार सुझावों में से एक सुझाव। मैं इन महाशय से कहना चाहुंगा कि अगर आपको मैं दो पैरों पर चलने वाले बंदर की तरह देखा जाय या फिर अभिव्यक्ति की बेहतरीन क्षमता और अपने आसपास घटित घटनाओं की कारणता जानने वाले सजग मानव के रूप में। इतिहास थोड़ा पढ़े और किताब पढ़े( किताब लेकर घुमें नहीं) केवल इंटरनेट पढ़ेंगे तो साधु और ओझा की तरह ज्ञान का हवन कर डालेंगे। कम्युनिस्ट कभी बाप के द्वारा की गई हत्या की सजा बेटे को देने की वकालत नहीं करता। इसमें आप यकीन करते होंगे। हम हत्यारों और दलालों की दुनिया से वाकिफ हैं और उसे जड़ से काटने में ज्यादा यकीन रखते हैं। माफ करिएगा हम बहुत सीधा जवाब देना जानते हैं। हम मानव और मानवनुमा दिखने वालों के बीच फर्क करते हैं।

Anonymous said...

अमेरिका में जो हो रहा है वह पाप है और ईरान चूंकि प्रतिरोध करता है वह पवित्र है, यह दृष्टि ठीक नहीं. फ़िल्म को फ़िल्म की तरह भी देख लीजिए. यह इतिहास बताएगा की ईरान की महान सरकार प्रगतिशील थी या अमेरिका की तानाशाही व्यवस्था सड़ी-गली थी. अलबत्ता यह याद रखना चाहिए की खुमैनी की क्रांति के बाद सबसे पहले ईरान में मार्क्सवादियों को खड़ा करके गोलिओं से उडाया गया था. उसके लिए कुछ हज़ार साल पीछे नहीं ३८ साल पीछे जाना है.

Wednesday, January 2, 2008

दंभी लोगों की गूंज है फिल्म 300


-विनिता
३०० की ऎतिहासिक पृष्ठभूमि एक बात है लेकिन उसका फिल्मी रुपान्तरण सिर्फ तथ्यों को नही रखता। इरानी सेना को दैत्यों, जादूगरों और पशुवत लोगों से भरा दिखाकर यह फिल्म जो कह रही है उसको समझने में किसी भी न्यूनतम राजनैतिक समझदारी रखने वाले को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। फिल्म में लियोनायडस के जरिये कही गई बात कि दुनिया में सभ्यता और स्वतंत्रता कि आखरी उम्मीद स्पार्टा है,में निश्चित तौर से आज के पश्चिमी महाबलियों कि भाषा की दंभी गूंज सुनी जा सकती है। इतिहास कि इस तरह कि तोड़-मरोड़ का हर तरह से प्रतिरोध होना चाहिए, निश्चित तौरपर सांस्कृतिक रुपों में भी, जिसका ईरानी संगीतकार यास एक अच्छा उदाहरण पेश करते हैं।

जो इतिहास है सो है...

इतिहास पर फिल्म बनाना वर्तमान को आइना दिखाना होता है। उसे सबक देना होता है। एक विषय के रूप में भी शायद इतिहास की जरूरत हमें इसीलिए होती है। फिल्म चाहे पचास बार बनाई जाय उसका मूल्यांकन उसके देखे जाने वाले समय के हिसाब से होगा। हिटलर के समय यहूदियों पर हुए अत्याचार के जरिए हम आज इजराइल की हरकत को वाजिब नहीं ठहरा सकते। लेकिन अमित जी मानते हैं कि ऐसा नहीं होता। वे 300 को ऐतिहासिक रूप से सही मानते हैं। इतिहास तो इतिहास है उसे बताने या दिखाने से संस्कृति कैसे नष्ट हो सकती है? अमित जी का यही सवाल है।

अमित जी लिखते हैं...
जनाब, यदि यहाँ देखेंगे तो यह आपको पता चलेगा कि इस कहानी पर फिल्म आज से 45 वर्ष पहले भी बनी है। यह कहानी ऐसी है कि उस समय के बाद से युद्ध विज्ञान और रणनीती के हर स्कूल में इसका अध्ययन किया गया है, आज भी होता है।

इस फिल्म में दिखाया गया है कि उस युद्ध में किस तरह स्पार्टा की 300 सैनिकों की एक छोटी सी सेना ने तत्कालीन पर्सिया (आधुनिक ईरान)को नेस्तनाबुत किया था

आपका पता नहीं पर मैंने यह फिल्म भी देखी है और 45 वर्ष पूर्व आई 300 Spartans भी देखी है और दोनों में से किसी फिल्म में यह नहीं दिखाया कि स्पार्टा के ३०० सैनिकों ने पर्शिया को नेस्तेनाबूद किया। दोनों में सिर्फ़ स्पार्टा के ३०० बहादुरों और थेस्पिआ के ७०० रणबांकुरों(यह 300 में नहीं वरन्‌ 300 Spartans में दिखाया है और इतिहास के अनुसार सत्यता के निकट है) की वीरता दिखाई है कि वे ज़र्कसीस की सागर जैसी सेना के सामने डटे रहे और लड़ते हुए प्राण त्यागे। और यह इतिहास में दर्ज है कि थरमाप्ली की भीषण लड़ाई के बाद प्लैटेया पर ज़र्कसीस की बाकी सेना का मुकाबला अन्य यूनानी राज्यों की सेनाओं से हुआ था और ज़र्कसीस की सेना की इतनी मारकाट हुई थी कि वह आखिरकार अपनी सेना छोड़ के वापस पर्शिया भाग गया था।

अब जो इतिहास है सो है, उससे किसी की संस्कृति कैसे नष्ट होती है यह मेरे को समझ नहीं आता। कल को कोई फिल्म बनाता है जिसमें दिखाता है कि डेढ़ सौ वर्ष भारत अंग्रेज़ों का गुलाम रहा और कैसे अंग्रेज़ों ने भारतीयों का शोषण किया तो क्या उससे भारत की संस्कृति नष्ट हो जाएगी? या कोई यह फिल्म बनाता है कि कैसे बाबर ने दिल्ली का तख्त हासिल किया और मुग़ल सल्तनत की नींव रखी तो उससे भारत की संस्कृति नष्ट हो जाएगी?

Sunday, December 30, 2007

फिल्म ३०० के खिलाफ


मध्य एशिया पर लगाई गई गिद्ध दृष्टि में अगला संभावित शिकार है ईरान। जिसकी नींव सांस्कृतिक स्तर पर रखी जा चुकी है। यकीन न हो तो हालीवुड़ की फिल्म '300' देख लें। अचानक हालीवुड को 480 ईसा पूर्व थर्मोपिलई के युद्ध की याद क्यो आई इसे आप बखूबी समझ सकते हैं। फ्रैंक मिलर के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में 480 ईसा पूर्व हुए थर्मोपिलई के युद्ध का वर्णन है। निर्माता वार्नर ब्रदर्स की इस फिल्म में दिखाया गया है कि उस युद्ध में किस तरह स्पार्टा की 300 सैनिकों की एक छोटी सी सेना ने तत्कालीन पर्सिया (आधुनिक ईरान)को नेस्तनाबुत किया था।
दुनिया भर में जनमत बनाने की कमान सभ्यता के ऐसे ही लुटेरों और दंभियों के जिम्मे है। लेकिन इस सांस्कृतिक हमले का विरोध शुरू हो चुका है। इस फिल्म के प्रतिरोध में ईरानी संगीतकार और लेखक यास ने एक बेहतरीन गीत लिखा है...



अग्रेजी अनुवाद
Listen. I want to tell you my intent
They want to erase my identity
The history of the land of the Aryans
Is screaming until we come to it
So now is the time for you to hear
Iran is my land the
The country which after 7000 years
Is still standing
And the hearts of Iranians – still like the sea
Hear this, my fellow Iranian, from YAS
I too for my land stand like a soldier
Hold Iran like a gem in your hand and say
My complaint will burst out like a shot
Let's stand together and sing our anthem
My sisters, my brothers, my fellow Iranians
Iran's civilization is in danger
All of us are soldiers beneath our flag
We won't let anyone spread lies about us
For us Iranians it is our calling
That we wear the symbol of 'Farvahar' around our necks
Our unity against an enemy is the cause of their distress
Iran's name for us is an honor
And our respect for her is like a thorn in eye for those
Who want to injure her

CHORUS:

- Like the thirst of a seed [wheat] for water
- Like the dampness of rain, the smell of earth
- Like you, pure eyes, like the feeling of its earth, for you
- My land. Singing for you is in my heart
- Singing of my land, is my feeling
- My love - the earth of this land – Iraaaan.

You want to say that we came from generations of Barbarians?
So take a look then to Takht Jamshid!
You're showing Iran's name in vein
So yours could be written big on a cover of a CD [DVD}?
I'm writing down your intentions in my book
I know why you wrote this film "300"
I know that your heart is made of stone and lead
Instead of using your art to make a culture of peace
In this sensitive air and bad atmosphere
You want to start fishing in murky waters [profiting]
But this I tell you in its original language
Iran will never be spoiled and surrendered
God has given you two eyes to see
Take a look and read the books written by
Saadi and Ibn-e-Sina, Ferdosi, Khayam or Molana Rumi
Always throughout history we were the start [on top]
But now YAS can't sit down quietly
Let Iran's name be marred by a few tricksters
I'll shred your intentions with the "razor of hope"
Who are YOU to speak of the history of Iran?

- CHORUS -

It was Cyrus The Great that started the peace
Freeing the Jewish from the grip of Babylon
Cyrus The Great wrote the first bill of human rights
That is why I carry my esteem and great pride
For my Iran. The history of my land
For the earth of this land which my body is from
Whatever part of the world you live my fellow Iranian
And till your blood flows through you
Don't allow yourself to be satisfied
That anyone can fool around with your heritage
The history of Iran is my identity
Iran – protecting your name is my good intent

Wednesday, November 28, 2007

जल रही हूँ मैं...


असम में संथाली समाज के ऊपर राज्य और उसके सभ्य गुंडों की हरकत ने फिर से एक बार शर्मसार कर दिया है। हर बार की तरह इस राज्य प्रायोजित हिंसा ने सबसे ज्यादा शिकार महिलाओं को बनाया है। जिसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है।

जल रही हुं मैं

इस छोर से उस छोर तक
तुम्हारी व्यवस्था में
उसमें जल रही हूँ मैं
और रह-रहकर भड़क रही है
मेरे भीतर आग ...
इसलिए चुप नहीं रहूंगी अब
उगलूंगी तुम्हारे विरुद्ध आग
तुम मना करोगे जितना
उतनी ही जोर से चीखूंगी मैं

मुझे पता है
झल्लाकर उठाओगे पत्थर
और दे मारोगे सिर पर मेरे
पर याद रखो
नहीं टूटूंगी इस बार
बिखरूंगी नहीं तिनके की भातिं
तुम्हारे भय की आंधी से
अबकी फूटेगा नहीं मेरा सिर
बल्कि चकनाचूर हो जाएँगे
तुम्हारे हाथ के पत्थर

और अगर किसी तरह हारी इस बार भी
तो कर लो नोट दिमाग की डायरी में
आज की तारिख के साथ
कि गिरेंगे जितने बूँद लहू के पृथ्वी पर
उतनी ही जनमेगी निर्मला पुतुल
हवा में मुट्ठी बांधे हाथ लहराते हुए ।

-निर्मला पुतुल
(निर्मला पुतुल चर्चित कवयित्री हैं । हिंदी और संथाली में लिखतीं हैं।)

हिंसा की इस प्रकृति पर यकीन न हो तो इसे देखें-

Thursday, October 11, 2007

आनंद पटवर्धन-रिबन फॉर पीस

भारत-अमेरिका परमाणु समझौते से देश की राजनीति में उथल पुथल की स्थिति बन गई है। लेकिन टेलीविजन और समाचार के दूसरे साधन इस समझौते के बारे में कम और चुनावी सर्वे ज्यादा कर रहे हैं। जनता को यह बताने के बजाय कि इस समझौते का देश या दुनिया पर क्या असर होगा। वे केवल राजनीतिक खींचतान पर केंद्रित कर रहे हैं। ऐसे में परमाणु हथियारों को धरती से खत्म करने की मुहिम में वे बिल्कुल हासिए पर हैं। लेकिन आम लोगों को इस तरह के किसी भी समझौते की खिलाफत करनी होगी जो दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त करना चाहते हैं। क्योंकि उनकी यह सोच जीवन के पक्ष में होगी न कि तात्कालिक लाभ के पक्ष में....

ऐसे गगन के तले...

Thursday, September 20, 2007

फैज..आज बाजार में...

फैज की शायरी का वीडियो.. ...साथ में आप फैज, नायरा नूर की आवाज में भी ....