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Sunday, September 9, 2007

नए एल्बम 'तन्हाई : लोनली हर्ट्स' की समीक्षा


एल्बम 'तन्हाई : लोनली हर्ट्स'
कलाकार- हरिहरन, भूपिंदर, सुरेश वाडकर , रूप कुमार राठौड़, शान
लेबल- यूनिवर्सल
कीमत- सीडी 150 रु
कवर से लगता है कि हिंदी पॉप का ये अलबम उस जनरेशन के लिए बनाया गया है जो एमटीवी कल्चर और ग़ज़ल-सूफ़ी दोनों के कहीं बीच में आती है , या कहें कि थोड़ा-थोड़ा दोनों से जुड़ी है। नाम भी 'दाग : द फायर' मार्का है, लेकिन गानेवालों में हरिहरन , सुरेश वाडकर, भूपिंदर और शुभा मुद्गल के नाम आकर्षित करते हैं। बकौल प्रोड्यूसर्स, इस सीडी में 10 soulful love songs हैं। देखते हैं क्या निकलता है।
पहला ट्रैक है हरिहरन का गाया
- 'कुछ देर तक, कुछ दूर तक तो साथ चलो '। लिखा है गीतकार अंजान के सुपुत्र और जाने-माने बॉलीवुडिया गीतकार समीर ने। हरिहन बड़ी रेंज वाले गायक है लेकिन शमीर टंडन की इस कंपोज़िशन में दिखाने लायक बहुत कुछ है नहीं। औसत सा गीत है। रिदम है 16 बीट्स। ड्रम्स का इस्तेमाल। सॉफ्ट सा पॉप। बीच में दक्षिण भारतीय शैली में रुद्र वीणा जैसा कुछ बजा है- वो अच्छा लगा है।
दूसरा ट्रैक है किसी संगीत साहब का गाया
- I am so lonely. समीर ने ये गाना हिंग्लिश में लिखा है। रिदम का बेस 16 बीट्स ही है, लेकिन थोड़ा वेस्टर्न टच देने की कोशिश की गई है। संगीत ने ठीक-ठाक गाया है। सुनते हुए दृश्य ऐसा बनता है जैसे किसी क्लब में कोई फुल -टाइमर किस्म का प्रेमी कोने में टेबल पर बैठी हसीना के लिए गिटार टाइप्स बजाते हुए मोहब्बत का इज़हार कर रह है।
तीसरा ट्रैक है शान का गाया
- आओ इस तरह जिया जाए। राग शिवरंजनी पर आधारित है। वही शिवरंजनी जिसमें मेरे नैना सावन भादों, जाने कहां गए वो दिन, दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर और ग़म दिए मुस्तकिल जैसे पॉपुलर गाने बने हैं। यही वजह से कि इस गाने की धुन बड़ी सुनी -सी लगती है। शिवरंजनी दरअसल दर्द या Pathos पैदा करने में बड़ी असरदार साबित होती है। भूपाली के सा रे ग प ध सां में सिर्फ ग को कोमल कर दीजिए - देखिए कैसे पूरी तासीर बदल जाती है। बहरहाल- ये भी एक औसत सा गीत है जो अच्छा लगता है तो इसलिए कि जिन सुरों पर ये आधारित है वो राग ही हिट है।
चौथा ट्रैक है रूप कुमार राठौड़ का गाया
- जहां तेरा चेहरा दिखाई न दे। शुरू में ऊंचे सुरों में आलाप है। सुर राग भूपकली ( अज़ीज़ नाज़ां का- चढ़ता सूरज धीरे-धीरे, मेहदी हसन का - अबके हम बिछड़े) के आस-पास घूमते हैं। बैरागी भैरव और अहीर भैरव की भी याद आती है। सुनते हुए फिल्म 'एक दूजे के लिए' का हिट गीत 'बाली उमर को सलाम ' के शुरू में अनूप जलोटा का गाया- कोशिश करके देख ले.. भी याद आता है। रूप कुमार राठौड़ काफी क्षमतावान गायक हैं। गाने में कई बार ऊंचे सुरों में काफी डूबा हुआ आलाप लिया है जो सुनने में अच्छा लगता है। कई अवॉर्ड जीत चुके जाने- माने गीतकार समीर इस गाने में एक जगह लिखते हैं- सिवा तेरे ज़िंदगी, है एक सेहरा। सही लाइन होती - बिना तेरे ज़िंदगी, है एक सेहरा। एक सवाल- मीडियॉकर ही अक्सर पॉपुलर क्यों होता है ? बहरहाल.. रूप कुमार राठौड़ ने अपनी गायकी से ये गाना सुनने लायक बना दिया है।
इसके बाद है सुरेश वाडकर की आवाज़ में
- तुमसे पहले मेरी जिंदगी में। समीर ने एक घटिया गाना लिखा है, और शमीर टंडन से उतना ही घटिया कंपोज़ किया है। सुरेश वाडकर जैसे उम्दा सिंगर ये गाना गाने को क्यों राजी हुए- पता नहीं।
छठवां ट्रैक है भूपिंदर का गाया
- गुज़रता नहीं चैन से एक पल। गाना शुरू होता है फीमेल वॉएस में राग पूरिया धनाश्री ( मेरी सांसों को जो महका रही है, हाय रामा ये क्या हुआ..) में खूबसूरत आलाप के साथ। भूपिंदर की आवाज़ इस गाने में अच्छी लगी है। फिलर म्यूजिक में सितार बहुत अच्छा बजा है। बीच -बीच में महिला का आलाप जारी रहता है। गाना अच्छा बना है।
सोनी पर जब पहली बार इंडियन आइडल शुरू हुआ था तो जवाब में स्टार प्लस ने वसुपर सिंगर कंपटिशन कराया था। इसमें अव्वल रहे थे रवींद्र उपाध्याय। अगला गीत
- वो रात दिन के किस्से , रवींद्र की आवाज़ में है। साथ में गा रहे हैं कोई शबाब साबरी। फॉरवर्ड कर देने लायक गाना है।
अगला गाना है शान के पुराने अलबम तन्हा दिल का टाइटिल ट्रैक
- तन्हा दिल। शान का ये गाना ठीक-ठाक चल गया था।
नौवां ट्रैक है शुभा मुद्गल का
- जग सूना सूना लागे। ये भी पुराने अलबम 'नाचूं सारी -सारी रात' से उधार लिया गया है। ये अलबम कब आया, कब गया पता नहीं। गाने में गिटार की लीड के साथ देर -देर तक फिलर म्यूजिक बजता रहता है। मुखड़े के बाद स्थाई का इंतज़ार लंबा लगता है। शुभा मुद्गल की अपनी अलग आवाज़ है, गायकी का अपना स्टाइल है। सो, गाना ठीक ठाक सा बन गया है। लेकिन इसका म्यूज़िक बोर करता है।
अंत में है सारंगी के उस्ताद सुल्तान खान का गाया
- कटे नाहीं रात मोरी, पिया तोरे कारन -कारन। पुराने अलबम 'भूमि' से लिया गया है। इस गीत को लिखा भी है सुल्तान खान ने और कंपोज़ भी उन्होने ही किया है। गाने में सारंगी का अच्छा इस्तेमाल है , ज़ाहिर है..। आपने शायद ध्यान दिया हो- सुल्तान खां साहब की उच्चारण की अपनी अदा है। कायदे से इसे दोष बोलना चाहिए। रात को 'राति' बोलते हैं, मनवा को 'मनिवा', चैन को 'चैने'.. .। बहरहाल, ये गीत बहुत मधुर बना है। आपने सुना भी हो शायद।
कुल मिलाकर ये अलबम 'तन्हाई' पैसा वसूल तो नहीं है, लेकिन लेकर पछतावा भी नहीं होगा।
#गिरिजेश

Monday, September 3, 2007

हरिप्रसाद चौरसिया का पॉवर एंड ग्रेस-1



गिरिजेश ने इस साप्ताहिक कॉलम में कुछ बदलाव किया गया है। अब एल्बम के संगीत की समीक्षा के साथ रागों के बारे में पॉपुलर तरीके से जानकारी देंगे। हरिप्रसाद चौरसिया का पॉवर एंड ग्रेस पार्ट 1 की समीक्षा कुछ इसी नजरिए से की गई है। जिसमें हम राग दुर्गा के साथ मालकौंस तक से आपको रूबरू कराएंगे । हमारी इस पहल पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें।

कलाकार - पं हरिप्रसाद चौरसिया
लेबल- टाइम्स म्यूजिक

कीमत- 295 रु


किशोरी अमोनकर का गाया 'गीत गाया पत्थरों ने' याद कीजिए। अब लता-मुकेश का 'चंदा रे मोरी पतिया ले जा ' गुनगुनाकर देखिए। कुछ कॉमन लगता है? आपको महूसस होगा कि दोनों के सुर काफी मिलते-जुलते हैं। दरअसल ये दोनों गाने एक ही राग पर आधारित है। राग है - दुर्गा । भक्ति रस से भरा शाम का खूबसूरत राग है। सोचिए कि जिन सुरों का चंचल सा इस्तेमाल करके इतने मधुर गीत बने हैं वो सुर , वो राग जब अपनी गति में, अपने पूरे विस्तार के साथ सामने आएगा तो कैसा दिखेगा। सीडी की शुरुआत में पं हरिप्रसाद चौरसिया कहते हैं कि वो सुबह की आराधना के तौर पर राग दुर्गा ही बजाते हैं। मैहर घराने के हरिप्रसाद चौरसिया सिद्ध संगीतकार हैं। हाथ भर की बांसुरी की देह में जब उनसी फूंक प्रवेश करती है तो नन्हीं सी , बेजान बांसुरी गाने लगती है। कोई मीठा सा राग, कोई आंचलिक धुन आस-पास भर जाती है। पक्के सुरों और सधे हुए विस्तार से आस- पास की कैफ़ियत बदल जाती है। आंखें मुंद जाती हैं। आप राग-रागिनी के बारे में कुछ भी नहीं जानते तो भी सुनते हुए आपको लगता है - इसमें कुछ है , इसी को संगीत कहते होंगे।

ये सीडी 2001 में अहमदाबाद में हुए सप्तक म्यूजिक फेस्टिवल की रिकॉर्डिंग है। इंट्रोडक्शन के बाद पहला ट्रैक है राग दुर्गा। सबसे पहले शांत, ठहरा सा आलाप शुरू होता है। मंद्र के सुरों से सा पर आना। उसके बाद सा रे , सा ध़ के बीच खेलना। अच्छा संगीतकार आपको ललचाता है। हरि जी, जिस फोर्स से षड़ज से ऋषभ पर पहुंचते हैं उसके बाद आपको लगता है कि अब मध्यम की बारी है। लेकिन वो धीरे से सुरों की सीढ़ियां बनाते लौट आते हैं। फिर से सा , ध़, सा, रे..। उसके बाद रे-रे लगाते हुए मध्यम को छूकर लौट आना। राग में पांच ही सुर हैं - सा रे म प ध सां, अब इन्हीं के साथ खेलना है। इसलिए, धीरे-धीरे..।

अलबम के तकरीबन सत्रहवें सेंकेंड में जोड़ शुरू होता है। ध्रुपद शैली में। और यहां शामिल होते हैं कम दिखनेवाले, अति विलक्षण वाद्य पखावज के साधक पंडित भवानी शंकर। भवानी शंकर ऐसे घराने से आते हैं जो पखावज पर कथक के साथ संगत करने के लिए मशहूर था। बहरहाल , पखावज का पावर और बांसुरी का ग्रेस एक साथ निखरने लगते हैं। सुर के साज़ पर सुर के साथ ताल दिखने लगता है, ताल के साज़ पर ताल के साथ सुर। ताल के इर्द गिर्द बांसुरी और पखावज एक दूसरे से अठखेलियां करते हैं। दो महान संगीतकारों का ये समन्वय सुनने लायक है। तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ट्रैक खत्म होता है।

अगला ट्रैक है राग मालकौंस। बहुत पॉपुलर राग है। शांत रस का राग है। गाने -बजाने का समय है आधी रात। आधा है चंद्रमा रात आधी, अंखियन संग अंखियां लागी आज , आए सुर के पंछी आए, मन तड़पत हरि दर्शन को आज - सब इसी राग पर बने हैं। तकरीबन तीन मिनट का आलाप। आलाप में हरि जी के सुर थोड़े उखड़े उखड़े से लग रहे हैं। शायद पिछले राग की द्रुत बजाने की थकान है । बहरहाल .. झपताल यानी 10 बीट्स में रचना शुरू होती है। तबले पर हैं फर्रुखाबाद घराने के बेहतरीन तबला वादक ऑनिंदो चटर्जी। तबले और बांसुरी की ये एक आम जुगलबंदी है। बहुत चमत्कार देखने को नहीं मिलता। बाइसवें मिनट में तबले पर लयकारी दिखती है। दस मात्रा की झपताल की लय बनाए रखते हुए आठ मात्रा और सोलह मात्रा की लयकारी। ये वो वक्त है से जब मुख्य कलाकार संगतकार को इशारा करता है - ले उड़ो। अनिंदो ने यहां अच्छी सी तिहाई ली है। अट्ठइसवें मिनट पर तबले को एक बार फिर मौका मिलता है। बांसुरी लय दे रही है- तबला मुख्य स्थान ले लेता है। तकरीबन एक मिनट तक उंगलियों की सफाई दिखाते हुए ऑनिंदो चटर्जी यहां भी एक सधी हुई तिहाई लेकर सम पर लौटते हैं। इसके बाद आखिरी के दो मिनट ध्यान खींचनेवाले हैं।

कुल मिलाकर, दुर्गा सुनने के लिए आप ये सीडी ले सकते हैं, लेकिन मालकौंस सूनने के लिए पचासों मिलेंगे।

गिरिजेश.

Tuesday, August 28, 2007

एल्बम समीक्षा- मिस्टीक साउंडस्केप-फारेस्ट


संगीत शोरगुल या चिल्लाहट है या फिर विवेकपूर्ण तार्किक लय प्रक्रिया। यह अपने प्रकृत में एकाकी है या सामाजिक, इस पर विवाद हो सकता है। लेकिन गिरिजेश की समीक्षा इसे एक व्यवस्थित विधा के रूप में स्थापित करती है। अनुभव, जो कुछ लोगों को व्यक्तिगत हरकत लगता है, इस समीक्षा में सामाजिक परिघटना लगेगी। गिरिजेश न केवल एक बेहतरीन गायक हैं, बल्कि ये संगीत को सामाजिक विकास से जोड़कर देखते हैं। बनावटी संगीत इनकी नजरों को धोखा नहीं देता। इस समझ को हर हफ्ते आपके साथ बांटेंगे संगीत के किसी नए एल्बम या गायक के साथ।

एल्बम-मिस्टीक साउंडस्केप्स- फ़ॉरेस्ट (म्यूजिक टूडे)
सीडी की कीमत-295 रुपए


पहले कहीं सुना होगा तो आप भी जानते और मानते होंगे कि तौफ़ीक़ क़ुरैशी (http://www.taufiqqureshi.com/) अच्छे परकशनिस्ट हैं। उस्ताद अल्लाह रक्खा के बेटे हैं, ज़ाकिर के छोटे भाई हैं और रिदम के धुरंधर हैं। अब तौफ़ीक़ अपने संगीतमय कल्पना के साथ जंगल घूमने का न्यौता दें तो एक बार तजुर्बा ज़रूर करना चाहिए। यही सोचकर ये नया अलबम मिस्टीक साउंडस्केप्स : फॉरेस्ट उठा लाया हूं। संगीत के माध्यम से जंगल और उसके रहस्य की अवतारणा करना मुश्किल काम है। देखते हैं तौफ़ीक़ ने ये काम कैसे किया है।
पहला ट्रैक है
- मॉर्निंग इन फ़ॉरेस्ट। जंगल में एक सुबह। प्ले दबा दिया। सफ़र शुरू होता है। चिड़ियों के चीखते से सुर। डफ़ और ड्रम्स के जरिए घनी , भरी-भरी, कोलाहल सी ध्वनियां। बांसुरी के जंगली से , आवाज़ लगाकर ग़ायब हो जाते से सुर। रह-रह कर एक ऊंचे स्केल पर पुकार लगाती सी इंसानी आवाज़। इस सब के बीच से एक रिदम शुरू होती है। 16 मात्रा का प्रकार। सभी वाद्य, बांसुरी, डफ़, पीछे का बेस और वो इंसानी आवाज़ - एक लय में आ जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे जंगल के बीचोबीच किसी कबीले में कोई रहस्यमय अनुष्ठान शुरू हो गया है ..। पीछे का शोर धीरे-धीरे थमता है और फिर एक स्थिरता आती चली जाती है।
दूसरी कंपोज़िशन है
- बर्ड्स आय व्यू। इस संगीत को सुनिए। कल्पनी कीजिए कि आप कहीं ऊंचाई पर हैं। सामने फैला है हरा- भरा, घना जंगल। यहां से वहां तक। और उसके बीच उठती एक रिदम। जिसमें मस्ती है। नाचने-थिरकने का मन करता है। किसी आदिवासी की ऊंची नशीली तान। ताल मूल रूप से दादरा या 6 बीट का प्रकार है। लेकिन इस कंपोजीशन को लीड कर रहा है सैक्सोफोन। जंगल में सैक्सोफोन? ये साज़ किसी क्लब की याद दिलाता है और ये रिदम जंगल की। अजीब सा मेल है। ख़ैर ..ट्रैक सुनने लायक है।
अब आते हैं
- द डीप । ड्यूरेशन के हिसाब से ये सबसे छोटा ट्रैक है। ताल 16 बीट के आस-पास है , लेकिन इसमें मिक्स है तेज़ हवा का इफ़ेक्ट और इंसानी वोकल। इसके समानांतर मेंढक की टर्र-टर्र से मिलता एक साउंड चलता रहता है। इस कंपोजिशन की थीम है- द डीप, ऐसा मानकर सुनिए तो लग सकता है कि किसी रहस्यमय गहराई का चित्रण है। वैसे थीम पर संगीत रचने में यहां संगीतकार कुछ नाकाम सा दिखता है।
अगला ट्रैक, द हंट यानी शिकार। क्रिया भी हो सकता है संज्ञा भी। बहरहाल। एक झन्नाटे के साथ बोल के रूप में ताल शुरू होती है। मध्य लय में एक ताल। यानी 12 बीट्स। धिं धिं धागे तिरकिट तू ना क त्ता धागे तिरकिट धी ना। कुछ दो चार आवर्तनों के बाद लय चौगुन में आ जाती है। बोल का पैटर्न भी बदल जाता है। लेकिन मात्रा बारह ही है। अंत में एक खूबसूरत तिहाई। सुनते हुए आप भूल जाते हैं कि ये किसी थीम पर था। ये ताल का आनंद है।
एनचैंटिंग फ़ॉरेस्ट। यानी आनंद देता जंगल। ट्रैक कुछ नए तरह का है। एक सरसराती सी फीमेल वाएस
..राग तोड़ी पर आधारित आलाप। राग तोड़ी , वही- वतन पे जो फिदा होगा, अमर वो नौजवां होगा। ताल है दस मात्रा। यानी ड्रम्स पर झपताल का पैटर्न। महिला के साथ के एक पुरुष की आवाज़ मिलती है। आलाप जारी रहता है। अंत में मध्य लय में ताल को फ़ॉलो करती थोड़ी सी सरगम। शैली दक्षिण भारतीय गायकी की याद दिलाती है , शायद इसलिए भी कि साथ में वॉयलिन बज रही है। लेकिन कुल मिलाकर ये कंपोज़िशन आंख मूंदकर सुनी जा सकती है। शांति देती है।
द वॉटरहोल।
इसे क्या कहें, पानी का गड्ढा..? शुरू होता है। अरे वाह , ये बढ़िया कंपोज़िशन है। 16 बीट पर ताल के बोलों से शुरूआत होती है। ताल को बोलनेवाला कलाकार सुर भी मेंटेन कर रहा है। इसमें सारंगी जुड़ती है। एक लोकधुन सा आलाप। लगता है जैसे राजस्थान के रेगिस्तान में कोई सारंगीवाला अपनी धुन में बजाता चला जा रहा है। देखें तो यहां भी थीम से पकड़ छूट जाती है - यहां कोई जंगल याद नहीं आता, न ही वॉटरहोल। लेकिन ट्रैक सुनने लायक है। मधुर है।
लाइव स्विंगर्स। मतलब आप ख़ुद लगा लीजिए। यहां तौफ़ीक़ वो सुनाते हैं जिसके उस्ताद वो भी हैं और उनके अग्रज ज़ाकिर हुसैन भी। जी हां,मुंह को गोल करके होठों और गालों पर थपकी देकर ताल निकालना। बैकग्राउंड में किसी पक्षी की चीखती सी आवाज़। महाभारत के क्रौंच पक्षी की याद आती है ...। एक साथ कई लोग मुंह बजा रहे हैं। सोलह मात्रा। तिहाई। उसके बाद तौफीकी आवाज आती है। जमाकर कहरवा के बोल बोलते हुए। इंसानी आवाजों का इंप्रोवाइजेशन है। कहरवा का बेस लेकर उसमें मिक्सिंग। इंस्ट्रुमेंट के नाम पर सम आने पर ड्रम साथ दे रहा है , बाकी सिर्फ़ इंसानी आवाज़े हैं। लेकिन ट्रैक भरा पूरा लगता है। लय तेज़ होती है, ताल का उन्माद बढ़ता है और धीरे -धीरे तिहाई लेते हुए फ़ेड आउट..।
रेवर्ड फ़ॉरेस्ट। मतलब, पूज्य या आदरणीय जंगल? एक श्लोक से ट्रैक शुरू होता है - नवां अरण्यां निर्भन्ति। फिर एक गंवई गवैए की पहाड़ी सी तान। भाषा क्या है, समझ में नहीं आती- शायद मराठी। लेकिन तान कुछ पहाड़ों की याद दिलाती है। श्लोक फिर शुरू होता है- ओम अरण्याय नम: । झाल-करताल जैसी एक रिदम शुरू होती है , कहरवा है शायद। गंवई गवैये की तान, पीछे-पीछे बांसुरी डूबे से सुर। उसके बाद तीन सुरों की हार्मनी बनाते हुए एक आलाप। इनमें ऊपर वाला सुर नुरसत की याद दिलाता है। दो आवर्तन के बाद एक सोलो आवाज़। किसी महिला की आवाज़ है। पकी हुई, रियाज़ी। सुर कभी जयजयवंती की याद दिलाते हैं, कभी तिलक कामोद की। राग पता नहीं क्या है।
आखिरी ट्रैक। कॉल ऑफ द नाइट। रात की पुकार। शुरुआत उन कीटों की आवाज़ से जिन्हें आपने काली अंधेरी,गांव की रातों में सुना होगा। इस कोरस को लीड करती है झींगुर की आवाज़। फिर महिला स्वर में आलाप शुरू होता है। राग यमन के आस -पास। ला-ला-ला के बोलों के साथ लोरी गाती हुई कोई नई नवेली सी मां। एक और फीमेल वाएस में वेस्टर्न म्यूज़िक में आलाप का पैटर्न आता है -चला जाता है। आलाप जारी रहता है। बीच बीच में हार्मनी बनती है। हिंदुस्तानी और वेस्टर्न का सुंदर फ्यूज़न है। ये ट्रैक भी सूदिंग सा है।
और इसी के साथ

- पटाक्षेप।
कुल नौ ट्रैक्स हैं। ज्यादातर अच्छे हैं। सुनिए- आनंद आएगा।

-गिरिजेश