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Thursday, March 25, 2010

इलाहाबाद का सांस्कृतिक हलका डूबा मार्कण्डेय के शोक में


२० मार्च, २०१०. इलाहाबाद.
आज सायं ५ बजे से वरिष्ठ कथाकार मार्कण्डेय की स्मृति सभा का आरंभ महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्विद्यालय दूरस्थ शिक्षा इकाई के सत्यप्रकाश मिश्र स्मृति सभागर में हुआ. इलाहाबाद शहर के तमाम बुद्धिजीवी, संस्कृतिकर्मी और वाम कार्यकर्ता मार्कण्डेय को श्रद्धांजलि देने उपस्थित थे. इस अवसर पर उपस्थित वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पांडेय ने मार्कण्डॆय के साथ अपने २५ साल पुराने रिश्ते को याद किया. उन्होंने कहा कि नई कहानी आंदोलन के समय प्रेमचंद की परम्परा के खिलाफ़ जितना कुछ लिखा गया, उतना न उस दौर के पहले और न उसके बाद लिखा गया. नई कहानी के संग विकसित आलोचना ने मानो शहरीपन को ही कहानी का पर्याय बना दिया. केंद्र में लाए गए राकेश, राजेंद्र यादव और कमलेश्वर जबकि बदलते हुए ग्रामीण यथार्थ को सामने लाने वाले कथाकारों खासकर रेणु, मार्कण्डेय और शिवप्रसाद सिंह की उपेक्षा की गई. दरअसल, यही लोग प्रेमचंद की परम्परा को आगे बढ़ा रहे थे. ये ऎसे कथाकार थे जो आलोचना के बल पर नहीं, बल्कि अपनी कहानियों के दम पर, उनके पाठकों के दम पर हिंदी जगत में समादर के पात्र रहे. एक कहानीकार के रूप में मार्कण्डेय के महत्व को सचमुच रेखांकित करने के लिए उस दौर की कहानी संबंधी बहसों का पुनर्मूल्यांकन ज़रूरी है.
प्रों मैनेजर पांडेय ने कहा कि मार्कण्डॆय व्यापक धरातल पर जनवादी और प्रगतिशील रचनाओं को देखते थे, कभी उन्होंने कट्टरता नहीं बरती, विरोध करनेवालों की भी ज़रूरत के वक्त मदद करने से नहीं झिझके. वरिष्ठ कथाकार शेखर जोशी मार्कण्डॆय का स्मरण कर भावुक हो उठे. उन्होंने कहा कि मार्कण्डॆय जिस परम्परा के थे, उसे वहन करने वालों का अतिशय सम्मान करते थे. 'गुलरा के बाबा' नाम की कहानी में भी उनका यह दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है. शेखर जी ने कहा कि उनका और अमरकांत का पहला कहानी संग्रह तथा ठाकुर प्रसाद सिंह का पहला काव्य-संग्रह मार्कण्डॆय जी के 'नया साहित्य'प्रकाशन से ही छप कर आया.शेखरजी ने कहा कि सरल स्वभाव के होने के चलते वे कष्ट देने वाले लोगों को भी आसानी से माफ़ कर देते थे.
समकालीन जनमत के संपादक श्री रामजी राय ने कहा कि इलाहाबाद में फ़िराक़ के बाद नौजवानों की इतनी हौसला आफ़ज़ाई करने वाला मार्कण्डॆय के अलावा कोई दूसरा वरिष्ठ लेखक न था. किसान जीवन उनके रचना कर्म और चिंताओं की धुरी बना रहा. रामजी राय ने उनसे जुड़े अनेक आत्मीय प्रसंगों को याद करते हुए बताया कि वे किस्सागो तबीयत के आदमी थे. उनके पास बैठने वालों को कतई अजनबियत का अहसास नहीं होता था. उनके व्यक्तित्व की सरलता बांध लेती थी.
प्रो. राजेंद्र कुमार ने कहा कि इलाहाबाद शहर की कथाकार-त्रयी यानी अमरकांत-मार्कण्डेय-शेखर जोशी में से एक कड़ी टूट गई है. 'कथा' पत्रिका जिसके वे जीवनपर्यंत संपादक रहे, को यह श्रेय जाता है कि उसने बाद में प्रसिद्ध हुए अनेक रचनाकारों की पहली रचनाएं छापीं. कथाकार अनिता गोपेश ने कहा कि मार्कण्डेय जी विरोधी विचारों के प्रति सदैव सहनशील थे और नए लोगों को प्रोत्साहित करने का कोई मौका हाथ से जाने न देते थे. वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कामरेड ज़िया-उल-हक ने मार्कण्डेय जी को याद करते हुए कहा कि प्रतिवाद , प्रतिरोध के हर कार्यक्रम में आने की , सदारत करने की सबसे सहज स्वीकृति मार्कण्डेय से मिलती थी. छात्रों और बौद्दिकों के तमाम कार्यक्रमों में वे अनिवार्य उपस्थिति थे.
स्मृति सभा का संचालन विवेक निराला और संयोजन संतोष भदौरिया ने किया.
मार्कण्डेय ( जन्म-२ मई, १९३०, जौनपुर -- मृत्यु- १८ मार्च, २०१०, दिल्ली )
पिछले दो सालों से गले के कैंसर से संघर्षरत थे. वे अपने पीछे पत्नी विद्या जी, दो पुत्रियों डा. स्वस्ति सिंह, शस्या नागर व पुत्र सौमित्र समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गये. बीमारी के दिनों में भी युवा कवि संतोष चतुर्वेदी के सहयोग से 'कथा' पत्रिका पूरे मनोयोग से निकालते रहे. इतना ही नहीं इलाहाबाद के तमाम साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आना-जाना उन्होंने बीमारी के बावजूद नहीं छोड़ा. 1965 में उन्होंने माया के साहित्य महाविशेषांक का संपादन किया। कई महत्वपूर्ण कहानीकार इसके बाद सामने आये. 1969 में उन्होंने साहित्यिक पत्रिका 'कथा' का संपादन शुरू किया. उन्होंने जीवनभर कोई नौकरी नहीं की. अग्निबीज, सेमल के फूल (उपन्यास), पान फूल, महुवे का पेड़, हंसा जाए अकेला, सहज और शुभ, भूदान, माही, बीच के लोग (कहानी संग्रह), सपने तुम्हारे थे (कविता संग्रह), कहानी की बात (आलोचनात्मक कृति), पत्थर और परछाइयां (एकांकी संग्रह) आदि उनकी महत्वपूर्ण कृतियां हैं। हलयोग (कहानी संग्रह)
प्रकाशनाधीन है. उनकी कहानियों का अंग्रेजी, रुसी, चीनी, जापानी, जर्मनी आदि में अनुवाद हो चुका है. उनकी रचनाओं पर 20 से अधिक शोध हुए हैं.'अग्निबीज' उपन्यास का दूसरा खंड लिखने, आत्मकथा लिखने, अप्रकाशित कविताओं का संग्रह निकलवाने, मसीही मिशनरी कार्यों पर केंद्रित अधूरे उपन्यास ''मिं पाल' को पूरा करने तथा 'हलयोग' शीर्षक से नया कहानी संग्रह प्रकाश में लाने की उनकी योजनाएं अधूरी ही रह गईं.राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट में इलाज करा रहे मार्कण्डेय ने १८ मार्च को दिल्ली में आखीरी सांसें लीं. अगले दिन( १९ मार्च )को उनका शव रींवांचल एक्सप्रेस से इलाहाबाद लाया गया तथा एकांकी कुंज स्थित उनके आवास पर सुबह १० बजे से दोपहर १ बजे तक लोगों के दर्शनार्थ रखा गया. इसके बाद रसूलाबाद घाट पर अंत्येष्टि सम्पन्न हुई. अंतिम दर्शन के समय और स्मृति सभा में उपस्थित
सैकड़ों लोगों में कथाकार अमरकांत, शेखर जोशी, दूधनाथ सिंह, सतीश जमाली,नीलकांत, विद्याधर शुक्ल, बलभद्र, सुभाष गांगुली, नीलम शंकर, अनिता गोपेश,असरार गांधी,श्रीप्रकाश मिश्र, उर्मिला जैन, महेंद्र राजा जैन, आलोचक मैनेजर पांडेय, अली अहमद फ़ातमी, राजेंद्र कुमार, रामजी राय, प्रणय कृष्ण,सूर्यनारायण, मुश्ताक अली, रामकिशोर शर्मा, कृपाशंकर पांडेय, कवि हरिश्चंद्र पांडेय, यश मालवीय, विवेक निराला,श्लेष गौतम, नंदल हितैषी,सुधांशु उपाध्याय, शैलेंद्र मधुर,संतोष चतुर्वेदी, रंगकर्मी अनिल भौमिक,अनुपम आनंद और प्रवीण शेखर, संस्कृतिकर्मी ज़फ़र बख्त, सुरेंद्र राही,
वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश नारायण शर्मा और विनोद्चंद्र दुबे, महापौर चौधरी जितेंद्र नाथ, ट्रेड यूनियन व वाम दलों के नेतागण तथा ज़िले के कई प्रशासनिक अधिकारी शामिल थे.

इलाहाबाद से दुर्गा सिंह

4 comments:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

भगवान शान्ति दें.......
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यह पोस्ट केवल सफल ब्लॉगर ही पढ़ें...नए ब्लॉगर को यह धरोहर बाद में काम आएगा...
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....

दिनेशराय द्विवेदी said...

मैं मारकंडेय जी के लेखन का अनवरत पाठक रहा। उन की स्मृति को सादर नमन!

KESHVENDRA IAS said...

मार्कंडेय जी का रचनाकार रूप तो शाश्वत है और वह उनेक पाठकों के साथ हमेशा बना रहेगा. वो अपने पाठकों के दिल में हमेशा बसे रहेंगे. इस महान साहित्यकार को मेरी विनम्र श्रधांजलि.

Kunal Verma said...

आपकी इस पोस्ट ने हमेँ क्रान्तिकारी शुरुआत की अनोखी कहानी का स्मरण करा दिया।धन्यवाद।